Friday, November 22, 2013

लोकतंत्र के चारों स्तम्भ हमाम में नग्न


जी लोकतंत्र के चारों स्तम्भ हमाम में नंगे हैं। चाहे न्याायिक तंत्र हो या विधायिका या फिर कार्यपालिका या फिर पत्रकारिता सब के सब स्त्री के साथ शोषण में लिप्त हैं। समाज जागरूक है उसे सारी ख़बरें मिलती रहती हैं। लेकिन जब पत्रकारिता खुद इसमें लिप्त हो तो यह भी कोई अचरज नहीं है। तरूण तेजपाल हों या कोई और मीडियाकर्मी यदि महिला कर्मीं के साथ दुव्र्यव्यहार करता है या शोषण शारीरिक तौर पर तो ज़रा चैकाता है।
तरूण तेजपाल वही हैं जिन्होंन कई स्टींग आॅपरेशन के जरिए कई राजनैतिक खुलासे किए बधाई लेकिन खुद जब महिला सहकर्मी के साथ शारीरिक शोषण के आरोप लगे तो महज संपादकत्व के धर्म से खुद को कुछ समय के लिए अलग कर लिया। क्या यही इसकी भरापाई है? सोचने कह बात है।
न केवल समाज के पत्रकार, राजनैतिक, शिक्षक तकरीबन हर वर्ग के वे लोग इस तरह के कुकृत्य में शामिल होते हैं तब समाज को सोचने की आवश्यकता है। जब लोकतंत्र के चारों स्तम्भ इस तरह से शक के घेरे में हों तो यह सिविल सोसायटी के लिए खासे चिंता का विषय है और विमर्श का भी।
समाज को आगे की राह तय करने, ले जाने और खबरों से अवगत कराने वालों के कंधों पर समाज बड़ी गंभीर जिम्मेदारी सौंपती हैं लेकिन जब खुद चेत्ता इस किस्म के हरक्कतों में
शामिल हों तो समाज की चिंता और भी बढ़ जाती है।
आज केवल पत्रकारिता बल्कि हर वर्ग इस तरह के कर्म में मुंह काला कर रहे हैं। ऐसे में समय में हमें खुद ही सचेत और चैकन्ना रहने की आवश्यकता है।

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