Friday, January 6, 2012

जो लिखे सो दिखे

जो लिखा जाए वो पढ़ा भी जाए इससे लिखने वाले को उत्साह तो मिलता ही है साथ ही यह भी मालुम चलता है की जो लिखा वो संप्रेषित हुवा या नही. यह तबी पता चलता है जब पढने वाले को बिना ज्यादा दिमाग कसरत किये समझ आ जाए.
साहित्य लिखने में कुछ लोग बेहद मशगुल होते है. जो मन में आये रुचे बस वाही लिखते हैं. यह जाचे बिना की पाठक को क्या हासिल होगा. यैसे लेखक महज लिखने का काम करते हैं.  यैसे ही लेखक आरोप लगाते हैं की पाठक आज कल पाठक कम हो गए. जबकि पाठक क्यों वो पढ़े जिसमे कुछ ना मिले.
पाठक वही पढना चाहता है जिसे उससे कुछ मिले.           

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