Monday, August 30, 2010

हिंदी में अस्तावार्क पर हसने वाले ज्यादा हैं

हिंदी में अस्तावार्क पर हसने वाले ज्यादा हैं ज़रा मुझे स्पस्ट करने दें हाँ मैं कहना चाहता हूँ कि आज हिंदी के रचनाकार जनक के दरवार में मौजूद विद्वान् सभासद की तरह अस्तावाक्र की वक्क्रता पर हसने वाले ज्यादा हैं। यानि हिंदी में महिला की लेखन में सिर्फ अश्लीलता तलाशने वाले की कमी नहीं है। महिला लेखन गोया लुगदी साहित्या हो। जबकि हिंदी साहित्य का इतिहास बताता है कि महिला लेखिकाए भी रही हैं मगर उनको वो तवाज़ो नहीं मिल पाया। प्रेमचंद की पत्नी शिव रानी देवी को कितना पहचान मिल पाए इक लेखिखा के रूप में। जब कि वो भी बेहतरीन कहानिये लिखा करती थीं।
इन दिनों इक अलग विवाद गरम है ख़ास कर विभूति नारायाण राय के बयान पर कितनी बिस्तर पर कितने बार शीर्षक सुझ्या है उन महिला लेखिका के लेखन पर जिन किताबों में विस्तार पर या रिश्तों के ज़िक्र हुवे हैं। जनक के दरबार में तत्व मीमांशा के लिए विद्वान अस्तावाक्र के वक्रता को देख कर हस पड़े थे। उस पर अस्तावाक्र का ज़वाब था ' महाराज ये तो अभी देह विमर्श से ऊपर ही नहीं उठ पाए हैं ये क्या तत्व मीमांशा करेंगे ? ठीक यही हाल आज हिंदी जगत में महिला लेखन के साथ हो रहा है। पुरुष लेखक महिला लेखन को देह विमर्श से ऊपर देख ही नहीं पाते। यैसे में उनकी लेखनी में कितना और किसे किस्म का कौशल है इस बात की चिंता पीछे रह जाती है।

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