Friday, August 13, 2010

आ से आम आदमी और आ से आज़ादी


आ से आम आदमी किसे तरह अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहा है उसे देख कर अंदाजा लगा पाना ज़रा भी मुश्किल नहीं कि वह मौत को गले लगाने में पीछे नहीं मुड़ता। आम आदमी को विश्वास हो चूका है कि उसे इसी तरह कबी महँगी होती रोटी, सब्जी और आसियान की उमीद में आखों की सपने सुखा के शिकार होने हैं।

ब्लैक बेर्री और नैनो की चिंता साथ में खेल में खुद को झाड पोच कर दिखने की जीद कितने लोगों को बेघर किया गया इसका अंदाजा लगा सकते हैं। हर तरफ जल ही जल , घोटाला ही घोटाला और कल के नाम पर करोडो रूपये की....

आज़ादी और घोटाला, सुखा और बाढ़, रोटी और मॉल, एक और कूलर के बीच फासले तो नहीं मिटा पाए लेकिन हाँ आज़ादी मुबारक के सन्देश अगर्सारित करने में आज़ादी समझते हैं। आज़ादी मुबारक

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