बार बार खुदी से लड़ना और थक कर बैठ जाना अक्सर यैसे पल हमारी ज़िन्दगी में आते रहते हैं। हर बार खुद को समझाते हैं कि नहीं अगली बार गलती नहीं होगी लेकिन होता यही है कि लोगों की बात की पार झांक नहीं पाते। या कहें कि देखना नहीं चाहते। भरम तुत्जाने का भय सताता रहता है। लेकिन लोगों से भरम ज़ल्द टूट जाएँ तो बेहतर रहता है।
कुछ लोग अपने आस पास इक जाल बुन कर रखते हैं। छेद कर झांक पाना आसन नहीं होता। वो लोग कभी ना नही कहते। हर बार हर मुलाकात में उम्मीद की इक झीनी रौशनी थमा देते हैं ताकि आप उनके जाल से बाहर न जा सकें। कितना बेहतर हो कि उमीद की उस किरण को समय पर बुझा दें तो कम से कम आप और कुछ कर सकें या सोच ही सकें।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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