Friday, August 20, 2010

कर्म की गति और जीवन के राह

कर्म की गति कोण जान पाया है आज तक। लेकिन हमारे कर्म हमारे साथ ही रहते हैं। जैसा भी हम कर्म करते हैं उसके अनुसार फल भी समय समय पर मिलते ही रहते हैं। अफ़सोस कि हम उसे अपने भाग्य के सर मद देते है। पता नहीं भाग्य में यही लिखा था। जबकि जो भी मिला या मिलेगा वो हमहे कर्मों से तै होता है।
जीवन में राह कोई भी आसन नहीं होते और न ही कठिन। राह इस बात पर निर्भर करता है कि राह पर चलने से पहले क्या हमने जच्पद्ताल की। क्या हमने अपनी तैयारी जाच की कि हम जिस रास्ते पर कदम रख रहे हैं उस पर चल पायेंगे भी या नहीं। हलाकि बोहोत कुछ राह पर चल कर ही उसकी जोखिमें मालुम हो पाती हो पाती हैं। इस लिए कई बार जोखिम उठने भी पड़ते हैं। जिसे भी जोखिम उठए है उनको सफलता के साथ कुछ हार भी मिले हैं लेकिन वो हार सफलता के आगे अदने से हो जाते हैं।
कोई खुद की विचार्शुन्यता का ठीकरा दुसरे के माथे नहीं फोड़ सकता। जो भी फोड़ता है वो अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है । दर्हसल हम खुद ही जोखिम नहीं उठाते। फिर ठीकरा दसरे के माथे न फोद्ये तो बेहतर। जीवन में कई बार यैसे भी पल आते ही हैं जब हमने आगे के पथ नहीं सूझते। लगता है हम आज तलक गलत ही राह पर भाग रहे थे। सारा का सारा परिश्रम जो बेकार गया। लेकिन वास्तव में हमारी समझ , सूझ और कर्म कभी विफल नहीं होते। समय के साथ वो हमारे संग हो लेते हैं।
क्या कोई इस दुनिया से भाग कर खुद या कि समाज का परिवर्तन , पलट कर पाया है ? नहीं हार कर भाग कर कोई समाधान नहीं निकाल सकते। जूझ कर ही राह धुंध से भी निकाली जा सकती है।
थक कर बैठ गए क्या भाई.....
मंजिल दूर नहीं है....
कुछ और दूर कुछ दूर,
चलना है आठो याम।
'हम को मन की शक्ति देना मन विजय करें। दूसरों के जय से पहले खुद का जय करें। '

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