Wednesday, July 21, 2010

जी का पत्र पुत्री के नाम

नेहरु जिस ने जेल में रहते हुवे बेटी इन्द्र को पत्र लिखा था। यह पत्र पिता का पत्र पुत्री के नाम से खासा प्रशिध हुवा। नेहरु जिस ने बेटी को दुनिया की समझ साझा किया था। इस लिहाज से नेहरु जिस ने पिता का धर्म पालन किया था। येसा कहने में ज़रा भी संकोच नहीं।
आज के तमाम जितने जी हैं यानि पिता जी , चाचा जी , तावु जी , आदि अपनी बेटी के नाम क्या पत्र लिखते हैं ज़रा ध्यान दें-
प्यारी बेटी ,
तुम को किसी और से जान का खतरा हो न हो कम से कम हम से तो है ही। हम तुम को कभी भी मौत के घाट उतार सकते हैं। उस पर तुर्रा यह कि हमने ज़रा भी अफ़सोस न होगा। हम जो भी करेगे वो घर , समाज और परिवार के नाम , नाक और परंपरा की खातिर करेंगे। तुम को तो मरना ही होगा बेटी।
तुम अपनी जान को ज़यादा सहेज कर मत रखा करो। जितना खाना पीना हो इसी पल में कर लो। क्या पता कल कोण तुम को प्यार करने लगे जो हमें गवारा न होगा। और तुम को खा मखा जान से हाथ धोनी होगी।
तुम अफ़सोस की बात करती हो ? पागल तो नहीं हो रही हो ? तुम कब बड़ी हो गई ? पहले समाज , घर की इज्जत है या कि तुम? तुम को गवा कर दूसरा बेटा या बेटी को जन सकते हैं। आखिर तेरी माँ और क्या दे सकती है ?
पहली बात यह कि शादी के बाद त्तुम पैदा हुई।
घर में गोया कोई मर गया हो। दादी तो जैसे सोंठ बनाना ही भूल गई।
और तुम हमारे आगे प्यार कैसे कर सकती हो ? प्यार के नाम पर धोखा खा कर रोटी घर आवो यह हमें पसंद नहीं। आज सेक्स ही प्यार हो गया है। प्यार के नाम पर सेक्स पाने का आसन रास्ता। हम तुम्हे इस रह पर नहीं जाने दे सकते। तेरी बुवा भी कभी चलने की जुरर्त की थी। आज तलक किसी को नहीं मालूम कि कहाँ चली गई। दादी आज तक पूछती है बेटी न जाने कहाँ चली गई। गई कहाँ उसे तो नीद सुला दिया गया। वह भी साथ में। वो भी पास लेता बा ॥ बा कहता होगा। तेरी बुवा को वो प्यार से बा कहता था। अब दोनों बेफिक्र हो दो अलग अलग लेकिन इक ही ज़मीं पर लेते हैं।
क्या तू भी छाती है कि तू भी बुवा के पास जा लेते। देख हमारे हाथ ज़रा भी नहीं कपेंगे। वैसे भी आदत हो गई है। मामा की बेटी भी तो नदी में नहाने गई कहाँ लौट कर आ सकी। बेटी समझ रही हो न।
मेरी प्यार की निशानी, बेटी मैं तेरा सब कुछ हूँ। समझा करो। जन्म दे सकता हु तो मौत की नींद भी तो सुला सकता हूँ। माँ की आखों में तू उस समय ममता की झिल्ली न पाएगी। गडासा या माचिस वही तो लगाएगी जिन घने बालों को वो घटा समझ चेहरे पर बिखेरते होगा। तेरी बालों को आग तो माँ ही लगाएगी।
बस अब और क्या कहूँ तुझे बेटी की तरह पाला है , बल्कि बेटी ही तो है। तावु या मामा, चाचा या पापा क्या फर्क पड़ता है आग लगाने वाला हाथ कोई भी हो मरना तो तुझे ही होगा। इस लिए मेरी मान तू प्यार मत कर तेरी शादी करा देते हैं जो करना हो वहीँ करना। न समझ हो तो तुझे कोई बचा सकता है।
तेरा अपना,
सब कुछ। पैदा करने वाला ,
पालने वाली,
गोद में घुमाने वाली गोद और सकल परिवार।

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