Thursday, July 15, 2010

शुक्रिया कहने का मन

मैं इक बार उन मित्रों का प्यार पलकों पर रखता हूँ जिन लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दिया....
जो लोग इस बात को ले कर रोते रहते हैं कि पठनीयता खत्म हो रही है तो बिलकुल गलत नहीं तो अर्ध्य सत्य है। इस बात कुबूल करना होगा। इक आलेख पर प्रतिक्रिया मिलना इस बात का प्रमाण है कि लोग पढने से नाता बरक़रार रखे हुवे हैं। बल्कि कहना चाहिए कि न केवल पढ़ते हैं बलिक वो लगो लेखक से अपनी बात मनसा ज़ाहिर करने में भी गुरेज नहीं करते।
पठनीयता खत्म नहीं हो सकती। बस माध्यम में तबदीली आ सकती है जो ताजुब नहीं। वैसे भी पूरा पाषाण काल से लेकर अब तक मध्याम तो बदलते ही रहे हैं। कहाँ हम शुरू में खड़िया, स्टोन , भोज पत्र, पेपिरस, ताम्र पत्र, स्तंभ, मिटटी की प्लेट पर लिखा करते थे। जैसे जैसे हमारे पास तकनीक आता गया वैसे वैसे हमरे लेखन और पठान में तेज़ी आती चली गई।
ताड़ पत्र, भोज पत्र, स्टोन आदि पर लिखते लिखते हमने कागज़ कलम से लिखा शुरू किया। चाइना में कागज़ मुद्रण तकनीक के आविष्कार से मुद्रण और लेखन में रफ़्तार आ गया। आज हाल यह है कि इक अखबार इक घंटे में लाख से भी ज़यादा कापी मुद्रित करने में आगे है। अखबार से आगे नज़र डाले तो पायेंगे कि इक ताफ्फी नुमा उपकरण में हजारों पेज आजाते हैं। उससे भी इक कदम आगे चले तो देख सकते हैं कि इक पल में शब्द किसे रफ़्तार से मीलों के फासले पलक झपकते नाप जाते हैं।
लोग कह रहे है आज पढने वाले कम हो रहे हैं। जबकि सच यह नहीं है। यदि लिखने वाला इमानदार हो कर लिखता है तो उसको पाठक के तोते नहीं पड़ते। चेतन भगत, किरण बाजपाई, जोशी जैसे लेखक का पाठक के कम होने कि शिकायत नहीं।
मैं इक बार उन मित्रों का प्यार पलकों पर रखता हूँ जिन लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दिया....

1 comment:

Unknown said...

karm kiya ja fal ki iccha mat kar ra insaan yeh hai GEETA KA GYAN .

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