Sunday, July 4, 2010

आतंक की कोई जमीर नहीं होती

इक बार फिर से लाहौर दहल गया। इससे इक बात तो साबित होती है कि आतंक की आखों में न तो धर्म न कौम न ही लिंग की कोई सीमा होती है। बस यदि कुछ होती हो तो वह है खून , चीख , बम और रुदन। वह आख किसकी, माँ की , बहन के भाई की या पिता की इससे भी उनको कुछ भी लेना देना नहीं होता। जिस ज़मीन पर पाले बढे और बचपन गुजारी उसको भी तबाह करने से पहले उनके दिमाग दिल के दरमियाँ किसी किस्म की हलचल नहीं होती।
ज़मीन पाकिस्तान की हो या भारत की। हर वो ज़मीन उनके लिए माकूल है जहाँ बम फोड़े जा सकते हैं जहाँ लोग बसते हों. वो जगह अल्ला टला का हो या भवन इश्वर का हो। उनकी निगाहों मेहर धर्म , कौम , लोग सामान हैं , सामान को नष्ट करने में ज़रा भी हिचक नहीं महसूसते। आत्मा या जीव की अमरता और भारतीय दशन गीता की कृष्ण उपदेश को जीवन में उतारा है कि
आत्मा न हन्यते न हंय मने शरीरे, न शोषयति मरुतः। वो मानते है हम कोई हैं किसी को मरने वाले या मारने वाले। सब खेल तो उस ऊपर वाले की है। हम तो बस माध्यम भर हैं। सीढ़ी तो केवल मंजिल तक पहुचने के लिए होती है अब कोई वहां से खुद कर जान दे दे तो उसमे सीढ़ी का क्या दोष।
वाश्तव में आतंकी के दिमाग से पहले पहल संवेदना , दर्द को महसूसने वाले कोने को खली किया जाता है। और फिर उसमे भरा जाता है नफरत , आतंक और पिद्दा में आनंद पाने की ललक। बचचन ने लिखा है ' पीड़ा में आननद जिसे हो आये मेरी मधुशाला' तो इस आतंक की मधुशाला में मुस्लिम युवा को लाया जाता है और चक कर नफ़रत , कौम , धर्म और ज़ेहंद की बतियाँ पिलाई जाती हैं। जिसे वो बड़े ही मन से पीते हैं। जो नहीं पीता उसे मधुशाला से बाहर का रास्ता दिहाका दिया जाता है। गरीब मुस्लिम परिवार के पिता अपने बेटे को इस मदिरालय में शौक से भेजते है। पैसे से घर की हालत ठीक करने की लालसा में इक बाप हजारो बेटे, बेटी और परिवार के नेवाला कमाने rवाले को मौत के नींद सुला ने को अपने बेटे को रुक्षत करते हैं । काश वो इक रात इक दिन भूखे सो जाते लेकिन बेटे को तबाही फ़ैलाने के रस्ते पर न जाने देते। अलाहः उन मुस्लिमो की सद्बुधी दे और उन्हें पाक रस्ते पर चले का हौसला दे। खुदा हाफिज। सब्बा खैर।

1 comment:

Anonymous said...

जब पाकिस्तानी मुल्क ने
बोया पेङ बबूल का तो आम कहाँ से होय ।

->सुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी का साक्षात्कार पढने के लिऐ यहाँ क्लिक करेँ

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