Sunday, July 4, 2010

भाषा जब लड़ने लगे

भाषा जब लड़ने पर उतर आये तो कोइन से भाषा इस्तमाल करेगी ? क्या वो आम फहम भाषा में लडाई करेगी या कोई और बोली में तू तू मैं मैं करेगी ? क्या हो सकती है उसकी भाषा?
पहली बात तो भाषा लडाई नहीं कर सकती दूसरी बात यदि भाषा के बीच लडाई की स्थति आ भी गई तो उनके बीच इस बात को लेकर लडाई तो हो सकती है कि आज तुम्हारी बड़ी चलती है जिसे देधो यही तुम्हे पढता है। हाँ भाई हो भी क्यों न तुम को पढने वाले विदेश , कॉल सेण्टर या फिर कसी नामी कम्पनी में काम करने लगते हैं। समाज में उनकी बात सुनी जाती है। तुम्हे तो चाहने वाले देश विदेश में हजारों की संख्या में हैं। वहीँ मुझे तो तब कोई पढना चाहता है जब उसे कहीं कोई राह नहीं सूझता। यैसे देखा जाये तो मैं तो तुम से बड़ी हुई या नहीं मैं तो हारे हुवे , निराश मन और आम जन की बोली वाणी हूँ। हर कोई ऑफिस बड़े लोगों के बीच पोलिश भाषा को बोल कर जब उब जाते हैं तब मन की भावों को अपनी बोली में ही कहना चाहते हैं। प्यार हो या लड़ाई तब तो तू कहीं कोने में चली जाती है। और वैसे भी अपनी जुबान में गाली देने प्यार का इज़हार करने के लिए तो अपनी उसी भाषा को जुबान पर लेट हैं जो उनके साथ दूध पीने से साथ रही है।
कुछ भाषाएँ सच में बाज़ार में, समाज , लोगों के बीच ख़ास तवज्जो तो दिला देती है। मगर हम जब सपने देखते हैं किसी को डाटते हैं रौब गत्ते हैं तब अपनी बनावती भाषा सामने आजाती है। वैसे तो भाषा से बड़ी बोली हुई फिर। वो तो हमारे जन्म से लेकर मरने तक साथ रहती है। यह अलग बात है कि उस बोली को हम दबा कर रखते हैं। लेकिन जब भी मौका मिलता है वो बोली तमाम बंदिशों तो तोड़ कर ऊपर आ ही जाती है। हमारी ओढ़ी हुई भाषा बोली के सामने नंगी हो जाती है। वैसे इस में कोई अश्लील बात नहीं। जो येसा देखते हैं यह उनकी नज़र की दोष हो सकती है।
भाषा बोली वाणी ये सब के सब शब्दों के अलग अलग रूपों में गुथ्ये होते हैं। अगर इनके तन्तुयों को खोल कर देखें तो पायेंगे कि इनकी रचना भी इक ही रसे से हुई है।

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