देह तो यहीं रह जाता है उन्ही मिटटी, पानी , आग , आकाश और हवा में घुल कर। जो भी लोग साथ चार कंधो पर लड़ कर लाते हैं कुछ ही दर में पर रख कर बैठ जाते हैं और जॉब , टेंशन , शादी , बेटे बेटी और दुनिया की बातो में मशगुल।
हम तो फिर भी चेत नहीं पाते। अहम् में चूर किसी को जीवन भर कहाँ लगते हैं। कोई कुछ बोल दे तो खाने को भागते हैं। जब कि सच मालूम है कोई भी पल भर घर में रखने वाला नहीं। हर कोई ज़ल्द से ज़ल्द बहार करने की बात करता है। फिर भी मकान बनाने , पैसा जोड़ने , लड़ने में अपनी बेशकीमती जीवन के पल जाया कर देते हैं।
किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि पैसा न जोड़ा जाये। अछ्ही लाइफ की कामना न की जाये। कर्म , परिश्रम से नाम, प्रशिधि, और पैसा भी कमाना ही चहिये। यदि चाहते हैं कि इक सुकून भरी ज़िन्दगी जी जाये तो पैसे की कीमत को नकार कर नहीं चला जा सकता। 'पॉकेट में हो पैसा तो खुदा भी जमीं पर आता है' है तो यह फिल्म का गाना मगर है सौ फीसदी सच। पैसे से आपकी बात, कद, नाम , प्यार सब कुछ जुदा हुवा है। गर पैसा नहीं तो माँ बाप तो माँ बाप यहाँ तक कि बीवी, बच्चे, दोस्त , प्रेमिका सब के सब ठीकरे भर भी भाव नहीं देते। कन्नी काटना जानते होगे जी हैं लोग आप से दूर जाने लगते हैं। लोगों को लगता है कहीं पैसा न मांग बैठे।
माना कि पैसा सब कुछ नहीं होता लेकिन पैसे न हो तो आप या कि हम कुत्ते से ज्यदा कुछ नहीं होते। हर कोई दूत कार कर आगे बाद जाता है। इस लिए यदि इज्जत , प्यार , दुलार नाम की ख्वाइश है तो पैसे की शाट को नकार कर नहीं चल सकते।
धन से मुक्ति या देह से मुक्ति दोनों तो दोनों इक तो नहीं नहीं लेकिन देह से मुक्ति के बाद पैसे की ज़रूरत नहीं होती लिकिन पैसे से मुक्ति तो जीवन भर नहीं होता। जिसके टेट में पैसे होते हैं बेटा भी उन्ही की सेवा करता है। लोभ में ही सही मगर यदि माँ बाप की सेवा बेटा पैसे की उमीद में करता है तो कम से कम सेवा तो हो रही है। इस लिए बुढ़ापा या जवानी सुन्दर बनाना है तो पैसा तो जोड़ना ही होगा।
तुलसी दास ने कहा है , 'आशा तृष्णा न मुई मरी मरी गया शारीर' देह से मुक्त हो सकते हैं। बेहद आसन है लेकिन उमीद , आशा और चैन की ज़िन्दगी की लालसा से मुक्त हो कर रह पाना ज़रा मुश्किल...
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2 comments:
यथार्थ जीवन का सत्य है पर हम हमेशा ही इससे भागते हैं। अच्छा लेख लिखा है ........
अच्छा आलेख
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