लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ की खबरें क्या किसी अख़बार में जगह पाती हैं? क्या कभी आप ने सोचा है की इस जगत में काम करने वाले लोगों की खबरें कहाँ छापतीं हैं। शायद कहीं नही, ये अपने ही जगत में खो जाते हैं।
इन दिनों अखबार और न्यूज़ चैनल में जम कर मंदी को लेकर लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। मगर आपने किसे चैनल या अखबार में इस बाबत ख़बर नही पढ़ी होगी। क्यों सोचा है आने वाले दिनों में और कितने लोग रोड पर होंगे यैसे पत्रकार जो आप को हर पल की ख़बर दिया करते थे वो भी हर कीमत पर। लेकिन उनकी हर पल खबरे कहीं नज़र नही आती।
क्या पत्रकारिता का यह कला फिलहाल संकट के दौर गुजर रहा है?
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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