Friday, January 2, 2009

साल की सुबह

पिछला साल जैसा भी रहा कम से कम इस साल कुछ बेहतर रहे। न हो बम धमाके, न लोग रहें परेशां। मगर देखिये साल की पहली सुबह बम blast में लोग फिर मरे। पर हम लोग कुछ तो येसा करें की यैसे वारदात न हो।
साल का अमूमन दिन सृजन में बीते।



No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...