वो अक्सर तोते वाले पंडित जी के पास बैठे रहते थे -
भर भर दुपहरी तोते का निकलना देखते रहते ,
तोता बाहर आता कार्ड निकलता ,
पंडित जी बचाते ,
ठीक ठाणे वाली मोड़ पर।
रोड के किनारे पंडित जी -
बैठे कार्ड पढ़ते ,
बस पाच रुपये लेते ,
चुन्नू दा घर जाते बस खाना खाने बाबा कहते आ गए खाना दो फिर जायेंगे काम पर ।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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