Monday, July 7, 2008

पत्र लिखने का दिन गुजर सा गया

कई दिन से सोच रहा हूँ पिता को लिखूं
कैसा हूँ
कितना याद आते हैं पिता
मौन शांत
कुछ गढ़ते से
या चुप चाप नदी के किनारे सुबह
टहलते हुए
पर क्या करूँ क्या लिखूं
हर शाम जब थक जाता हूँ तब याद आते हैं पिता
लिखने को ख़त बैठता हूँ
लेकर कलम
पर हाथ नही चलते
झूठ लिखते कापने लगते हैं
के मैं ठीक हूँ
वो पढ़ कर उदास हो जायेंगे
सो छुपा लेता हूँ
खुश हूँ
आप पिता याद आते हैं माँ पास में बैठी
कहती

1 comment:

Advocate Rashmi saurana said...

bhut bhavuk kavita. ati uttam. likhate rhe.

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