क्या सोचा है कभी की जब आप की पकड़ी जाती है झूठ तब कैसा लगता होगा ?
नही सोचा होगा , कभी हम अपनी गलती पर कब सोचते हैं ? बस दुसरो की गलती निकलते रहते हैं तभी तो हमें अह्नुभाव ही नही होता की कभी तो सच बोलने की सहस जुटा पायें मगर हमारे आगे अहम् आ जाता है ।
आब यैसे में दोष किसे दिया जाए ? क्या आप ने कभी सोचा है? शायद मौका न निकल पायें हों? क्या सच है ।
अगर हाँ तो सच को मानाने की सहस जुटानी ही चाहिय ।
क्या आप भी इस विचार से इतफाक रखते हैं ?
आप को असहमत होने की भी पुरी छुट है मगर बच कर निकलना ठीक नही होता ।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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