Thursday, April 13, 2017

अकेली हो गई


वो शायद अकेली हो गई थी। निराश और हताश भी होगी। शायद जॉब ही वो कारण रहा हो। रहा भी। इक्रीमेंट। पैसे में बढ़ोत्तरी। उसके जीवन पर हावी हुआ हो गया। पैसे और पद उसकी जिंदगी पर भारी पड़ गया।
वो इस दुनिया से ही कूच कर गई। वो अकेली नहीं थी। उस जैसे और भी हैं जिन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह गए। तनाव और हताशा। इन द्वंद्वों के दबाव में जीवन हार गई। जीने की ललक और ताकत चूक गई।
हम जिस दौर में जी रहे हैं वो बड़ी तनाव और द्वंद्वों भरा है। हमारा स्वयं का जीवन इतना रिक्त हो चुका है कि बाहरी तत्वों से जीवन भरा चुका है। आंतरिक खुशी और उल्लास रिक्त हो चुका है। पैसे और पद हमारी जिंदगी के मकसद तय किया करते हैं।
हम यहीं अपनी पकड़ जिंदगी पर खोते जा रहे हैं। तय करना होगा कि जिंदगी बड़ी है या पद, पैसे और प्रमोशन।

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