Monday, April 4, 2016

हर बंदी की अपनी कहानी


कौशलेंद्र प्रपन्न
उधमसिंह नगर के सितारगंज में संपूर्णानंद केंद्रीय शिविर कारावास जो कि हल्द्वानी से तकरीबन पचपन किलोमीटर दूर खेतों और जंगलनुमा प्रकृति की गोद में बसा है। आसपास सिर्फ खेत खलिहान और कुछ नहीं। कुछ गोरू डांगर दिखे चारा खाते हुए। इस जेल के द्वार पर सन्नाटा और उदासी जैसी स्थायी घर बना चुकी सी लगी। जेल के अधीक्षक श्री टीपी जोशी ने बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत किया और जेल का बड़ा सा गेट खोला गया। गेट पर रखी रजिस्टर पर नाम पता,समय आदि दर्ज कर अंदर प्रवेश किया। कई सारी जिज्ञासाएं, सवाल,उलझनें साथ ही हो लीं। इन कैदियों/बंदियों से कैसे बात करनी है? क्या बात करनी है? आदि।
यहां रहने वाले कैदियों/बंदियों को दो वर्गों में बंाटा गया है। पहले वे बंदी हैं जिन्हें शिविरवासी कहा जाता है। ये शिविर मंे खुले रहते हैं। बाहर आना-जाना,जेल की खेती बारी करना इनके जिम्मे होता है। यह छूट, ऐसी आजादी यूं ही नहीं मिली इन्हें। बलबीर सिंह से जब बातचीत हुई तो उन्होंने बताया वो पिछले बीस साल से उम्र कैद की सज़ा काट रहे हैं। उनके व्यवहार आदि को देखते हुए उन्हें शिविर में रहने की इजाजत दी गई। उन्होंने बताया कि वे बाजार,शादी ब्याह आदि में भी जाते हैं। वहीं दूसरे किस्म के वे बंदी हैं जिन्हें चाहरदीवारी के अंदर रहना होता है। इन्हंे शिविरवासियों की तरह स्वतंत्रता नहीं है।
मो. हक़ साहब की उम्र यही कोई सत्तर साल है। इनकी भी अपनी कहानी है। यहां सब के साथ अपनी -अपनी कहानी चला करती है। इन्हें इस जेल में तकरीबन पंद्रह साल हो गए। क्या कोई उम्मींद है बाहर जाने की? तब बड़ी डबडबाई आंखों से कहते हैं संभव है अब आत्मा ही आजाद हो पाए। इन्हें किस जुर्म में यहां लाया गया? हक साहब बताते हैं इन्हें राजनीतिक आंदोलन में कैद किया गया अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं बलजीत सिंह की अपनी कहानी है। शादी के एक साल बाद ही उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली। उनके भाई वकील और पुलिस मंे थे ऐसी धाराएं लगाई कि अब तक जेल में उन्हें बीस साल से ज्यादा हो गए। पूछने पर की घर में कौन कौन हैं बताया कि मां है और भाई है। कभी कभी मिलने आ जाते हैं।
एक बिल्कुल किशोर आयु का लड़का मिला जिसकी उम्र यही कोई बीस की रही होगी। उसकी गर्ल फ्रैंड अचानक इसके कमरे आ गई और शादी के लिए दबाव बनाने लगी। इसके मना करने पर उसने पुलिस बुला ली। भगाने के आरोप लगा कर उसे जेल भेज दिया गया। ऐसे ही और भी बंदी हैं यहां। कुछ को देख कर एहसास तक नहीं होगा कि इन्होंने कोई जर्म भी की होगी। एक ओर बीच बाईस साल के तो दूसरी ओर पचास,पचपन साठ और सस्सी साल के बंदी भी मिले। उनके चेहरे पर अब कोई ख़ास भाव नहीं आते। बस ख्ुाली आंखों से देखते रहते हैं। मुसकान तो गोया उनकी जिंदगी से दूर बहुत दूर जा चुकी हो।
दरअसल यह आम जेलों जैसा नहीं है। चारों ओर खेती होती है। बंदी ही किसानी करते हैं। बलजीत बताते हैं कि पैदा हुए अनाज अपने भर रखने के बाद हम लोग बाकी अनाज दूसरे जेलों मंे भेज देते हैं। संपूर्णनंद केद्रीय शिविर कारावास इस रूप मंे अलग है कि यहां बंदी को काफी छूट है। अब यहां बंदियों को उनके गृह राज्यों मंे हस्तांतरित किया जा रहा है। इसे लेकर बंदियों मंे आपस मंे काफी उदासी है। जीवन सिंह ने बताया कि हमलोग यहां भाई की तरह रहते हैं। हर पर्व त्योहार मिल जुल कर मनाते हैं। लेकिन ख़ुदा जाने कब यहां से बाहर आएंगे और आसमान में ताकने लगते हैं। जोशी जी ने बताया कि इस जेल की जमीन पर सरकार की नजर है। एक एक कर इसपर कब्जा  किया जा रहा है। सिडकुल बसा कर इसकी आधी जमीन सरकार ले चुकी है।


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