Monday, October 19, 2015

पांव मेरे जूते आपके


जब पांव मेरे होंगे तो जूत आपके कैसे हो सकते हैं। कैसे कह दूं कि आपके जूते मेरे पांव मंे आ सकते हैं। लेकिन बाजार में यह सब कहना और चुनना पड़ता है। बाजार के अनुसार हम अपनी जरूरतों को बढ़ाते और घटाते हैं। आज हम सभी इसी बाजार के हिस्सा हो चुके हैं। कपड़ों के हिसाब से तन की लंबाई, मुटाई किया करते हैं।
कपड़ा हो या जूता। बड़ा हुआ तो छोटा करा लेते हैं। छोटा हुआ तो किसी और के लिए खरीद लिया करते हैं। सेल के इस माहौल में कुछ और नहीं हो सकता। सेल में खरीद्दारी करेन का जनून किस कदर हावी होता है कि जरूरत न हो तब भी हम बाजार की चपेट में आ ही जाते हैं। न साल नहीं अगले साल पहनेंगे। सर्दी के कपड़े गर्मियों में ही खरीद लेते हैं समझदार किस्म के लोग जो ठहरे। क्यांेकि सर्दी में यही कपड़े महंगे हो जाएंगे इसलिए गर्मी में ही सर्दी के कपड़े खरीद कर जमा कर लेने की आदत से मजबूूर हो चुके हैं। जूता यदि मन मुताबिक दिख गया तो खरीद ही लेते हैं। ज़रा ढीला हुआ तो क्या कपड़े ठूंस कर पहन लेंगे। शर्ट टाईट हुई तो सर्दियों मंे स्वेटर के नीचे पहने लेंगे। इस तरह से हम खरीद्दारी किया करते हैं।
हम बढ़े समझदार हो चुके हैं। समझदारी तो गोया टपका करती है। बाजार में गए नहीं कि कुछ न कुछ तो खरीदना ही है। यह हम मान कर चलते हैं। यही कारण है कि माॅल्स लगातार बेतहाशा खुलते ही जा रहे हैं। देखना यह दिलचस्प होंगा कि यह भेड़चाल कब और कहां जा कर रूकने वाली है।

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