Monday, July 6, 2009

निरा यकांत

जब हम निरा एकांत होते हैं तब सच्ये अर्थो में ख़ुद के लिए सोचा करते हैं वरना तो लोग अक्सरहां भीड़ में ही अपनी पहचान तलाश किया करते हैं। क्या यह भी सच नही की जब भी हम एकांत में हुवा करते हैं तब ख़ुद से ही डर कर दुबारा भीड़ में खो जाने को बेताब होजाते हैं। एसा इस लिए की हम ख़ुद का सामना नही करना चाहते। आखिर किस्से भाग रहे होते हैंवो कोण सा डर हम ने पल रहा होता है उसे पहचान कर बहिर निकलन ज़ुरूरी है। वरना आप तो देख रहे हैं ख़ुद से भागने का कितना ही नायब तरीका हमने धुंध निकला है हर समाये या तो मोबाइल पर गाने ठूस रहे होते है या टीवी पर अलर बालर जो मिल जाए हसी के पल तलाश रहे होते हैं। दर्हसल ये सरे ख़ुद से भागने के बहने ही तो हैं

1 comment:

Asha Joglekar said...

बिलकुल ठीक । हम जब अकेले होते हैं तभी अपने आप से रूबरू होने का मौका हमें मिलता है पर हम बाग खडे होते हैं ।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...