Monday, June 29, 2009

रिश्ते की चुभन

हाँ कभी कोई रिश्ता बड़ा ही सुकून देता है। कभी वह चाय बन कर तो कभी धुप में पल भर के लिए विश्राम देने वाला होता है। उस इक रिश्ते में कितनी शक्ति होती है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते है की इन्सान सब कुछ भूल कर ख़ुद को सौप देने में अपनी सार्थकता समझता है। पर हर रिश्ते इक रेखा में कहाँ चला करते हैं। कुछ दूर चल कर भाव्यें मुद जाया करता है। दुसरे शब्दों में कहें तो यह होगा के कुछ ही पल में कोण रिश्ता अपना रंग बदल लेगा यह तय शुदा नही कह सकते।
हर रंग हर रिश्ते के अपने तशीर और परिणति होती है। आप या की हां उसे रोक नही सकते। जिसे जन है वो लाख रोक लें वह रुकने वाला है ज़रा भी भरम न पले इस की कोशिश रहनी लाज़मी है वरना आसू की जड़ी तो लगेगी ही , कोई रोक नही सकता। जो कभी आप के बगैर रह नही पाने के दम भरा करते थे वो साहब आराम से रहने लगते हैं। बात बिल्कुल साफ है , उसने तै कर लिया है रह सकते हैं। रहते रहते तो पत्थर से भी लगाव हो जाया करता है।

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