आज कल मुझे सड़क की रंग लाल दिखती हैं । यूँ तो सड़कें काली हुवा करती हैं, लेकिन आजकल काली के बजाये लाल दिखती हैं। सरकारी रिपोर्ट बताती हैं भारत में सड़क पर बेतहाशा खून बह रही हैं ।
लोग और गाड़ी के रेलमपेल में इन्सान के कीमत ख़त्म से होती जा रही है। सिर्फ़ आगे भागने के जुगत में कोई कुचल जाए मगर हम युफ़ तक नही करते। सड़कें कहीं नही जाती जाती है इंसानी भाग। सड़क का क्या कुसूर वो तो लोगों के बेहतरी और मंजिल तक ले जाने के लिए वचनबद्ध होती है लेकिन कोई रह में दम तोड़ दे तो सड़क क्या करे।
इक बार गाड़ी हो या इन्सान घर से निकलने के बाद तै से नही कह सकता की वो सकुशल घर पर वापस आएगा।
हर किसी की कोशिश यही होनी चाहिए की हर कोई घर लौट जाए। स्कूल जाती बिटिया पापा को...
काश हम पापा , भाई , पति को सड़क पर तड़पने को न छोडें।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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