Wednesday, May 29, 2019

मिशन मात्रा जी


कौशलेंद्र प्रपन्न
हम सब शिक्षाकर्मी की एक बड़ी चिंता यह होती है कि हमारे बच्चे पढ़ना नहीं जानते। हमारे बच्चों को हिन्दी में ख़ासकर मात्रा लगाने में कठिनाई आती है। यह एक आम एवं ख़ास चिंता है। इस चिंता के साथ हम क्या करते हैं यह महत्वपूर्ण है। अहम तो यह भी है कि बच्चे यदि मात्रा नहीं लगा पाते या उन्हें मात्राओं की समझ नहीं है तो हमारी रणनीति या प्लानिंग क्या हो ताक उन्हें मात्रा में आने वाली दिक्कतों को दूर कर पाएं। वैसे याद हो कि दिल्ली सरकार ने यही कोई दो साल पहले मिशन बुनियाद की शुरुआत की थी। यह मिशन बुनियाद की कक्षाएं मई माह में लगा करती हैं। यूं तो कुछ शिक्षकों के लिए यह अतिरिक्त कार्यभार ही होता है जिन्हें छुट्टियों में भी कक्षाएं लेनी पड़ती हैं। लेकिन उन्हें इस बात खुशी भी होती हो कि उनके अथक प्रयास और बच्चों की लगन देखते हुए बच्चे जब पढ़ने लगते हैं तब उन्हें उतनी थकन न होती हो।
आप किसी भी ऐसी कक्षा में जाकर देखिए सच मानें बच्चे बहुत खुश और प्रसन्नता के साथ पढ़ रहे होते हैं। ऐसी ही एक कक्षा में जाने का मौका इन दिनों मिला। बच्चे ु  ू ि  ी मात्रा लगा कर पढ़ने और लिखने की कोशिश कर रहे थे। शिक्षिका पूरी तल्लीनता के साथ बच्चों को बोर्ड पर शब्दां को लिख और बच्चों से लिखने का काम दे रही थीं। बच्चे उसी उत्साह से नए नए शब्दों बना रहे थे। वे बच्चे एक वर्ण पर मात्राएं लगा कर उन्हें बोल भी रहे थे।
मैंने उनके कहा ‘‘चिड़िया नदी किनारे एक पेड़ पर बैठी थी। क्या कर रही होगी?’’
बच्चों ने जवाब दिया ‘‘वो अपने बच्चों के लिए घर बना रही होगी।’’
‘‘घर वो किन चीजों से बनाती है?’’ मैंने पूछा ‘‘ क्या वो ईट भट्ठे से ईट लाती होगी? क्या वो लकड़ी लकड़ी टाल जाकर लाती होगी?’’
बच्चों ने मना कर दिया। बच्चों ने कहा ‘‘वो मैदान में या खेत में जाकर बाहर से तिनके, घास, रस्सी लाती है। उससे वो घोसला बनाती है।’’
यह संवाद चल ही रहे थे। बीच में मैंने कहा वो जो चिड़िया है उसे लिखना नहीं आता। क्या कोई उस चिड़िया जी की मदद करेगा कि वो लिख कर अपनी बात आप सभी को समझा पाए।
इस कक्षा में उपस्थित तकरीबन चार पांच बच्चियों सामने आने लगीं। उन्होंने लिखने की कोशिश। कुछ ने बिल्कुल सही सही लिखा। हां दो बच्चियां ऐसी थीं जिन्होंने सच्ची को सची लिखा। चोच में चौच लिखा लेकिन जैसे ही इन दोनों से लिखा वैसे ही बाकी कक्षा की बच्चियों ने उसे सुधारने के लिए कहा। और बच्ची बोर्ड के सामने आकर उसे ठीक कर लिख गई। लिखने में प्रति बच्चों में काफी उत्साह देखने को मिला। बल्कि न केवल लिखने के प्रति बल्कि लिखे हुए शब्द को पढ़ने में भी उन्हें आनंद आ रहा था।
लिखते रहे और कहानियां बनाते रहे। इसमें बच्चों की सहभागिता ख़ासा अहम रही। हमने एक शब्द चुना कि आप सभी किस नदी के किनारे रहते हैं। दिल्ली किस नदी के किनारे है। बच्चों ने पहले जमुना कहा फिर सुधार कर यमुना जवाब दिया। फिर हमने इसे कहा ‘‘ चिड़िया को बोलना नहीं आता। कैसे बोले वो यमुना बोले कि जमुना बोले? इस पर बच्चों ने ही जवाब दिया यमुना ठीक रहेगा। तो कहानी आगे बढ़ी ‘‘एक चिड़िया यमुना किनारे के एक पेड़ पर बैठी थी। उस पेड़ पर उसने घोसला बनाना चाहा। इसके लिए उसे कुछ सामान की ज़रूरत थी। वो उड़कर पास के खेत और मैदान में गई वहां से तिनके, घास, पेड़ की टहनी आदि लेकर आई। और उसने अपने छोटे छोटे बच्चों के लिए एक घोसला बनाया।’’
बच्चे इस कहानी को बुनने में अपनी पूरी कल्पना शक्ति का प्रयोग कर रहे थे। बीच बीच में मैं उन्हें सिर्फ सोचने में मदद कर रहा था। बाकी पूरी कहानी उन्हीं की थी। मेरी एक और कोशिश यह थी कि बच्चे जो बोल रहे हैं उसे लिखने और पढ़ने की भी कोशिश करें। इस कहानी में आए नदी, पेड़, तिनाक, घर आदि शब्दों में कहां कहां छोटी और बड़ी मात्राएं लगी हैं उन्हें कैसे बोलेंगे और उन्हें कैसे लिखेंगे इसका अभ्यास भी कराता जा रहा था। बच्चों ज़रा भी यह एहसास नहीं हुआ कि कोई उनके बीच आया और मात्राएं सीखा गया। बच्चों मुंह की आकृति बनाने बिगाड़ने में खूब आनंद उठा रहे थे। कैसे छोटी मात्रा लगाने पर मुंह थोड़ खुलेगा और कम समय लगेगा और बड़ी मात्रा में मुंह ज्यादा खुलेगा और समय भी अधिक लगेगा इस प्रक्रिया के दौरान बच्चों को ख़ासा मजा आया।
शायद इसे ही बड़े बड़े शिक्षाविदों ने खेल खेल में शिक्षा का नाम दिया होगा। इस भाषायी शिक्षण में पता ही नहीं चला कि कब आधा घंटा गुज़र गया और बच्चों को छह मात्राएं यूं ही कहानी के ज़रिए सीखाने का प्रयास किया। लेकिन बच्चे तो बच्चे होते हैं उन्हें एक जुड़ाव सा हो गया। उन्होंने आग्रह किया बल्कि दुबारा आने के लिए जोर दिया कि कल भी आईए। यह तो मालूम नहीं कि कल जा सकूंगा कि नहीं किन्तु आज को जीया और जीने का भरपूर आनंद बच्चों को दिया। एक पारंपरिक कक्षा में भाषा शिक्षण से हट कर उन्हें भी मजा आया और जिन मात्राओं ने उन्हें परेशान कर रखा था वो भी दूर हो गया।
जब भी कोई बच्ची या बच्चा बहुत तेज बोलता या मैं मैं बोलूंगी की आवाज़ बहुत तेज रखता तो मेरा बस इतना कहना था ‘‘ मात्रा रूठ जाएगी’’ मात्रा को तेज आवाज और बहुत सी आवाज पसंद नहीं है। यदि आपको कुछ कहना है तो मात्रा बहन को धीरे से कहो। प्यार से कहो। जब मैंने कहा मात्रा जी या मात्रा बहन जी तो बच्चों की आंखें चमक उठीं। उन्होंने कहा मात्रा जीम ात्रा बहन जी!!! ये क्या? तब मैंने कहा हर मात्रा और हर आवाज़। बल्कि हर शब्द और हर व्यक्ति अपने लिए सम्मान चाहता है इसलिए मात्रा को भी जी लगा कर बोलोगे तो उसे अच्छा लगेगा। जैसे आपलोग मैडम जी बोलते हैं। तब उनकी भी इस बात में सहमति बन गई।

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