Tuesday, August 28, 2018

जॉब, तनाव और हम


कौशलेंद्र प्रपन्न
हम सब अपनी अपनी जॉब से परेशान रहते हैं। कोई अपने बॉस से तो कोई अपनी जॉब की प्रकृति से। कहीं न कहीं कुछ तो है जिससे हम सब परेशान रहा करते हैं। यदि काम को समझते हुए और रणनीति बनाकर कर्मचारियों को दी जाएं तो संभव है हमारे कर्मचारी काम को बेहतर तरीके से बिना रोए करें। लेकिन बॉस व कहिए ऊपर बैठे लोगों को भी कई बार इतनी हड़बड़ी होती है कि उस बेचैनी को सीधे नीचे सरका दिया करते हैं।
तकनीके के आ जाने से जैसे जैसे काम आसान हुए वैसे वैसे काम उलझते भी चले गए। हाथ में कम्प्यूटर न आ गया गोया समझते हैं कि हर चीज तुरत फुरत में एक क्लीक में हासिल की जा सकती है। जबकि ऐसा है नहीं।
सरकारी दफ्तर हो या निजी कंपनियां हर जगह ऐसे निराश और हताश लोगों कीं संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है जो काम की अपेक्षा और परिणाम की उम्मींद लगातार कर्मचारी को तनाव में डाल रहे हैं। राखी की ही बात है घर पर सरकारी तंत्र में काम करने वाले भी थे और निजी कंपनी में काम करने वाले भी। जब एक बार शिकायतों और असंतुष्टी की बात चली तो सबके दुःख, दर्द,तनाव एक एक कर खुलने लगे। देखते ही देखते सभी के अंदर दबी या सोई भी निराशा फ्लोर पर फैलने लगी।
गोया कोई अपनी जॉब से खुश नहीं है। सरकारी नौकरी करने वालों के तर्क थे कि जब 2002 के बाद पेंशन भी नहीं है फिर क्यों हम सरकारी नौकरी में आएं। वहीं पहले सरकारी नौकरी को थोड़ा ही सही आराम का पर्याय माना जाता था। लेकिन अब तो वह भी जाता रहा। अब तो वाट्सएप पर काम की लिस्ट भेज दी जाती है। न पैसे हैं और न चैन फिर क्योंकर आज भी बच्चे सरकारी नौकरी की ओर भागते हैं आदि।
जॉब की प्रकृति हर जगह बदली ह,ै बल्कि बदल रही है। क्या सरकारी और क्या निजी। काम का दबाव और काम की त्वरित गति में मांग दोनों ही स्तरों पर रफ्तार और दबाव को महसूसा जा सकता है। हालिया एक वाकया बयां करना चाहता हूं कि एक व्यक्ति से साझा किया कि रात में 11 बजे मेल मिलता है कि कल आपको फलां जगह फलां काम के लिए जाना है आदि। वह व्यक्ति सुबह मेल चेक करता है और प्री प्लान्ड काम को पीछे धकेल कर आज मिले आदेश को पूरे करने में जुट जाता है। ऐसे और भी वाकये हैं जिन्हें देखते और सुनते हुए एहसास होता है कि जब हम स्वयं व्यवस्थित नहीं होते तब ऐसी अफरा तफरी का सामना करना पड़ता है। इतना ही बल्कि जब हमारे पास पूर्व योजनाबद्ध काम की सूची नहीं होती तब भी ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं।
फर्ज़ कीजिए जब आपसे अचानक फलां लिस्ट मांगी जाती है जिसे आपने कमतर प्राथमिकता की सूची में रखा था अब उसे रिटी्रव करना हमारे लिए मुश्किल होता है। यानी यदि हम अपने काम को सही तरीके से, सही स्थान पर, सही नाम से आदि सुरक्षित रखें तो कभी भी हमें फाइल डेटा आदि को पुनःपाने में ज़्यादा समय बरबाद नहीं होगा। लेकिन ऐसी ही तो नहीं कर पाते। कहां की फाइल कहां रख देते हैं। कौन सी फाइल किस ड्राइव में सेव कर देते हैं इसका ख़मियाजा हमें तब भुगतना पड़ता है जब हमसे हमारे बॉस या उच्च अधिकारी मांग बैठते हैं। 

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