Tuesday, January 24, 2017

शिक्षा में गुणवत्ता और तदर्थ शिक्षक


कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा में गुणवत्ता की मांग तो की जाती है लेकिन किनके कंधे पर सवार होकर शैक्षिक गुणवत्ता आती है इसे नजरअंदाज करते हैं। शिक्षा में बेहतरी के लिए प्रशिक्षण उद्देश्यों को कैसे हासिल की जाए इन्हें ध्यान में रखते हुए देश भर में मंडलीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों की संस्थापना 1988 में की गई। इन संस्थानों का मकसद शिक्षा में आने वाले प्रशिक्षु छात्रों को बेहतर प्रशिक्षण प्रदान किया जाए ताकि स्कूली स्तर पर शिक्षा की स्थिति को दुरुस्त की जा सके। दिल्ली में नौ डाइट खोले गए। आज इन नौ डाइट में से सात में पूर्णकालिक प्रधानाचार्य नहीं हैं। कई डाइट में पूर्णकालिक गणित, हिन्दी आदि विषय के प्राध्यापक नहीं हैं। इन संस्थानों में तदर्थ शिक्षकों के जरिए प्रशिक्षण कार्य को अंजाम दिया जा रहा हैं। इन संस्थानों में रिक्तयां लंबे समय से खाली हैं। जिन्हें पूर्णकालिक प्रध्यापकों से भरने की बजाए तदर्थ शिक्षकों से भरा गया है। नब्बे के दशक में शिक्षा में तदर्थ शिक्षकों जिसे शिक्षा मित्र, पैरा टीचर आदि के नाम से जानते हैं देखते ही देखते शिक्षा जगत में छा गए। स्थाई शिक्षकों के कमी आज न केवल शिक्षण संस्थानों में हैं बल्कि स्कूलों और कॉलेज में भी है। सिर्फ दिल्ली की बात करें तो स्कूलों में कम से कम पांच हजार पद खाली हैं।
प्रो अनिल सद्गोपाल तदर्थ शिक्षकों के पीछे की नीति को अपनी किताब ‘‘शिक्षा में बदलाव के सवाल’’ के पाठ ‘शिक्षा नीति का संकट’ में लिखते हैं कि विश्व बैंक की नीति के कारण शिक्षकों का भविष्य भी खतरे में हैं। बैंक का एक दस्तावेज कहता है कि शिक्षक की नौकरी कभी भी स्थायी न हो और वे ठेके पर लिए जाएं। इन पंक्तियों की रोशनी यह समझना आसान है कि क्यांकर नब्बे के दशक में शिक्षा में सरकार तदर्थ जिसे ठेके पर रखने की बात की गई है ,उसपर जोर दं रही थी। बल्कि दे भी रही है। आज की तारीख में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, शिक्षण संस्थानों में तदर्थ पर शिक्षकों की भर्ती की जाती है। डाइट जिसका जिक्र किया गया वहां गणित, भाषा, विज्ञान के स्थायी शिक्षकों के पद वर्षों से खाली हैं। वहीं प्राचार्य के बिना ही नौ से सात डाइट चल रही हैं। और तो और शिक्षा में कहने को तो हर साल बजट में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन सकल घरेलू उत्पाद का अभी भी तीन प्रतिशत ही बैठता है। उस पर भी केवल दो प्रतिशत खर्च शिक्षक प्रशिक्षण में और शिक्षा के कुछ साधनों पर हो रही हैं।
हमने 1960 के आस पास ही घोषणा की थी कि पंद्रह सालों में हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा कक्षा एक से आठवीं तक की शिक्षा मुहैया करा देंगे। वह पंद्रह साल कब का जाता रहा। 1995 में एक बार फिर घोषित किया कि 2005 तक सभी बच्चे प्राथमिक शिक्षा पा लेंगे। लेकिन शिक्षा के अधिकार कानून लागू हुए छह साल गुजर चुके लेकिन आज भी 7 करोड़ से ज्यादा बच्चे स्कूलों से बाहर हैं। वैश्विक स्तर पर हुई घोषणाओं में हमने हस्ताक्षर कर कबूल किया था कि 2015 तक देश के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया करा देंगे लेकिन यह तय सीमा भी हाथ से छूट गई। अब 2030 तक जिसे सस्टनेबल डेवलप्मेंट गोल ‘एस डी जी’ के नाम से घोषणा हुई है। इसके अनुसार हम लोग 2030 तक सभी बच्चों को समान, गुणवतापूर्ण शिक्षा प्रदान कर देंगे।

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