Monday, January 23, 2017

अच्छा हुआ गालिब...

तुम इस जमाने में न हुए,
होते तो जाया ही परेशां होते,
हमने खींच दी है एक रेखा
मोटी रेखा
तुम्हारे और तुलसी के बीच।
रेख्ता और दोहे के बीच भी खोद दी है जमीन
तुम तो उर्दू और हिन्दी के पैरोकार ठहरे
हमने उसे भी ढाह दी है,
हिन्दी को इस मार रखा और उर्दू को उस पार फेंक दी है।
अच्छा ही हुआ गालिब...
होते तो जार जार रेते,
हमने तो रंगों, फूलों और तो और
भाषा को भी बांट दी है
बड़ा हिस्सा इस पार
छोटा हिस्सा उस पार।

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