Tuesday, August 11, 2015

घोषणाएं हंै घोषणाओं का क्या



घोषणाएं होती हैं करने के लिए। किसने कह दिया कि घोषणाओं को पूरा भी करना है। नहीं किया तो आपकी जान पर पड़ जाएगी। वो भी राजनीति में तो बेहद आमफहम बात है। हाल में प्रधानसेवक जी ने बिहार में घोषणाओं की नई पौध लगाई है। उन्होंने कहा है कि बिहार को बिमारू राज्य से बाहर निकालना है। उन्होंने तो यह भी कहा कि बिहार को विकास के राह पर हांक देंगे बस शर्त यह है कि राज्य का कमान उनके हाथों में सौंप दिया जाए। सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र में रहते हुए वे बिहार की स्थिति को नहीं सुधार सकते। क्या बिहार के विकास के लिए इस राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेना जरूरी है या राजनीतिक फैलाव भर करना चाहते हैं। बिहार राज्य की शिक्षा, तकनीक, विकास आदि को लेकर बहुत हांफते हुए बहुत सारी घोषणाएं की गई हैं। कौन नहीं जानता कि जो सपने व घोषणाएं बिहार व अन्य राज्यों की आंखों में चुनाव के इर्द गिर्द दिखाई जाती है उनका उत्ता चुनाव क्या हस्र हुआ करता है।
किसी समाज व राज्य की खुशहाली,विकास संपन्न्ता वहां की शिक्षा,स्वास्थ्य, रोजगार आदि के आधार पर देखा जाता है। यदि इन बिंदुओं पर बिहार पर नजर डालें तो पाएंगे कि शिक्षा के नाम पर फर्जी डिग्रीधारी शिक्षक प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापन कर रहे हैं। इस बाबत न्यायालय के आदेश के बाद 14 से ज्यादा शिक्षकों ने त्यागपत्र दे दिया। यह संख्या कहां तक पहुंची इसकी फाॅली अप स्टोरी किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका में शायद नहीं छपी। तय था कि आठ जुलाई तक जिनके पास भी फर्जीडिग्री है वे अपना इस्तीफा दे दें। लेकिन आठ जुलाई के बाद कितने इस्तीफे आए क्या सरकार को पता है? क्या मीडिया ने इसका फाॅलो अप किया। जवाब आप सभी को पता है। समाचार पत्र एक बाद खबरों को उछाल कर अगली खबर की ओर मुड़ जाया करती है। हालांकि यह सरलीकरण होगा किन्तु कम से कम इस खबर व हकीकत के साथ तो यही हुआ है। शिक्षा की स्थिति तो यह है कि प्राथमिक स्तर से लेकर उच्चतर और विश्वविद्यालीय शिक्षा में भी उम्मीद की रोशनी नजर नहीं आती। पटना विश्वविद्यालय में इस अकादमिक सत्र में हिन्दी विभाग में महज पांच दाखिले हुए। यह खबर भी पिछले माह आई थी। अभी यह संख्या कहां तक पहुंची किसे मालूम है?
शिक्षा ही वो आधार है जिस जमीन पर खड़े होकर हम राज्य व देश की तबीयत कैसी है, का अंदाजा लगा सकते हैं। प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर पर अव्वल तो शिक्षा की छीजती हुई परते नजर आती हैं। जहां कुछ शिक्षक पढ़ने का अपना मूल कर्तव्य मानकर पढ़ाते हैं उन्हें गैर अकादमिक कामों में हांक दिया जाता है।

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