Monday, June 22, 2015

आंगन कहां है अम्मा


घर भर में एक आंगन ही हुआ करता था
जहां अम्मा बैठाकरती थीं
अंचरा में बायन लेकर
रखा करती थीं हाथ में बायन
तोड़ तोड़कर गाजा, लड्डू
ठेकुआं।
आंगन ही था-
जहां बैठा करते थे
पिताजी
स्कूल से लौटकर
रखा करते थे
झोला भरे तरबूज से या मकई से।
हमें पिताजी का इंतजार कम
झोले का जोहा करते थे बाट
डांट भी वहीं मिला करता आंगन में,
धीरे धीरे आंगन बदल गया कमरे में
कमरे दबडे में।
आंगन ही हुआ करता था
जहां गड़ता था बांस
मंड़प भी वहीं छवाया जाता था
हल्दी भी वहीं लगती थी बहन या भाई को।
आंगन ही था जहां दादी रखी गई थीं-
सोई थीं दादी अंतहीन यात्रा पर जाने के बाद
सभी वहीं हुए थे इकट्ठे
चाचा, चाची,
बुचुनिया की माई
ओमबहु
सब वहीं लोर बहाए थे
वह आंगन ही था।
टू प्लस वन
या त्रि प्लस वन में
कई बार चक्कर काट चुका हूं
कहीं आंगन नहीं मिला
न मिली वह जगह जहां संग संग बैठ सकें सभी
कभी जुट जाएं रिश्तेदार,
भाई बहन।
वैसे भी अब ये लोग भी तभी आते हैं
जब कोई शादी ब्याह हो
या फिर......

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