Sunday, June 14, 2015

अथा तो योग विवाद अनुशासनम्


अथा तो योगानुशासनम् पातंजलि के योगदर्शन का पहला सूत्र है। छः दर्शनों में एक दर्शन योग दर्शन है। इन दिनों योग पर ही विवाद खड़ा हो गया है। यहां स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यम,नियम,आसन,प्राणायाम,धारणा, ध्यान समाधिः आदि मिल कर योग बनते हैं। लेकिन विवाद योग के एक अंग आसन पर उठा है। आसन में भी सिर्फ एक आसन सूर्यनमस्कार पर। यह कहीं भी जिक्र नहीं मिलता कि सूर्यनमस्कार में मंत्रों का उच्चारण किया ही जाए। माना जाता है कि सूर्यनमस्कार में दस आसनों का समावेश है। इस एक आसन को करने से तकरीबन दस आसनों का लाभ मिलता है। आसन प्राणायाम करने से शारीरिक और मानसिक शांति और सौष्ठव से किसी को भी गुरेज नहीं हो सकता। विवाद यहां उठा कि सूर्यनमस्कार के दौरान मंत्रोंच्चारण करना पड़ता है।
मेरा खुद का अनुभव कुछ और कहता है। मैंने कभी मंत्रों का जाप नहीं किया लेकिन आसन नियमित करता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि आज भी कठिन से कठिन आसन कर लेता हूं। हाथ पर चलना हो या अद्र्ध त्रिकोणासन सहजता से करता हूं। बद्ध मयूरासन से लेकर बद्ध सिरसासन भी करता हूं। पिछले कुछ सालों से नियमित नहीं कर पाने की वजह से कमर बढ़ गया था। पुरानी पैंटें नहीं आती थीं। लेकिन पिछले दिसंबर से नियमित आसन करने की वजह से आज पुरानी पैंटें पहन पा रहा हूं।
मेरी तो राय यही है कि एक खास आसन के साथ मंत्र को जोड़ कर योग के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।

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