Tuesday, November 11, 2014

शिक्षा दिवस पर एक सवाल


शिक्षा जीवन को कैसे संवारती है? क्या शिक्षा महज तालीमी समझ विकसित करती है? क्या शिक्षा का लक्ष्य रोजगार मुहैया कराना है या शिक्षा इससे कहीं अधिक है? इस किस्म के सवाल कई बार हमारे सामने आते हैं। लेकिन हम उनका जवाब देने की बजाए महज अपनी बौद्धिक खुजलाहट को मिटाते हैं। यदि नेशनल एजूकेशन नीति को देखें तो पाएंगे कि शिक्षा रोजगार के साथ ही जीवन कौशल भी सीखाती है। शिक्षा से उम्मींद की जाती है कि वो हमें बेहतर जीवन जीने के लिए जीवन दर्शन भी प्रदान करे। लेकिन रोजगार का लक्ष्य इतना बड़ा होता है कि हमें शिक्षा के दूसरे महत्वपूर्ण आयाम पीछे छूट जाते हैं। हम सिर्फ रोजगार के प़क्ष को सुदृढ करने में पूरी शक्ति और प्रयास जाया करते जाते हैं।
सच ही है कि अंततः शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात हमें नौकरी करनी पड़ती हैं। बगैर नौकरी के जीवन यापन संभव नहंीं है। यही वजह है कि मां-बाप अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर रोजगार परक शिक्षा दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। लेकिन सोचने की बात है कि क्या वह बच्च जिसके लिए मां-बाप अपनी सारी शक्ति और उर्जा लगा देते हैं वह नौकरी पाने के बाद उन्हें याद रख पाता है? क्या अपने साथ उन्हें रखने में दिलचस्पी रखता है? यदि नहीं रखता तो हमने उसे किस प्रकार की शिक्षा प्रदान की है इस पर ठहर कर विचार करना होगा।

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