Thursday, October 9, 2014

अंतिम बिस्तर



मेरी जब लगेगी बिस्तर
सिलवटें हटाने तुम न आ पाओगी,
दहलीज़ के उस पार,
खड़ी बिलखती रह जाओगी।
साथ होंगे वो जो कभी साथ थे
साथ होंगे जो कभी झांकने नहीं आए,
जिनके बगैर खुशियां बिखरे थे
बस पास वहां तुम न होगे।
मां तुम न होगी
बहन तुम न होगी
संगिनी तुम न होगी
वह नींद कैसी होगी।
आंखें खोल देख न पाउंगा,
पलकें अश्रुगलित होंगी,
तुम्हें न पा उठ न पाउंगा
ऐसे में तुम कहां होगी।
मां तुम बिन कभी नींद न आई
रात बिरात बड़बड़ाते उठ जाता हूं
प्रिये तुम बिन नींद न आई
रात बिरात तुम्हीं को टटोलता हूं।
उदास होना कभी मेरे बगैर
कमी खली कभी मेरी
झांक लेना खिड़की के पार
चिरईं बन आ जाउंगा।

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