Tuesday, December 31, 2013

संवाद के ललित पुल


मेरे अत्यंत प्रिय लेखक कम बड़े भाई हैं ललित जी, रोज दिन नई कविताओं के सिरजनहार। यह एक चेहरा है उनका। दूसरा चेहरा क्या जानना चाहेंगे आप?
तो दिखाता हूं- वह महज कवि नहीं बल्कि आज के हनुमान भी हैं। हनुमान माफ कीजिएगा मिथ का सहारा ले रहा हूं किन्तु संभव है नारद जी की भी कभी याद आए जाए उन्हें देख कर। नारद हां जिन्हें पत्रकारिता का पहले पत्रकार के नाम से भी  जाना जाता है। ललित न केवल बिछड़े  हुए के बीच संवाद के पुल बनते हैं बल्कि साक्षात भी जा मिलते हैं।
ऐसे ही वल्लभ डोभाल हों, शेरजंग गर्ग हों, गोविंद मिश्र हों, ज्ञान चतुर्वेदी हों या अन्य कथाकार, कवि, हर विधा के कलमकार के साथ सीधी बातचीत और सौहार्दपूर्ण रिश्ती की डोर को मजबूत करने में माहिर इस नारद को और भी शक्ति दे प्रभू ताकि हमारे बीच पुराने, वृद्ध कलमकारों की बातें पढ़ने को मिलें।
नए साल पर और और उर्जा और शक्ति, मन को मनबूती दे आगे बढ़ें कि जैसे बढ़ती की हवा। कि जैसे बढ़ते हैं सृजनशील पग।

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