Monday, December 23, 2013

पुरस्कार के महरूम भी लेखन


कई बड़े नाम वाले लेखकों से बात होती रही है। वो निर्मल वर्मा हों, वल्लभ डोभाल हों, शेरजंग गर्ग हों या कोई अन्य लेखक जो वास्तव में लेखन करते हैं उनकी नजर में पुरस्कार महज लेखनोत्तर एक सामाजिक स्वीकृति है इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
बतौर शेरजंग गर्ग जी ने एक बातचीत में कहा कि पुरस्कार पाने की प्रसन्नता तब ज्यादा होती है जब आपको उसे पाने के लिए कोई जोड़ तोड़ न करना पड़।
वहीं निर्मल वर्मा ने एक बार मुझ से बातचीत में कहा था कि पुरस्कार मिलने से उत्साह मिलता है। लिखने के लिए और और प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन पुरस्कार के लिए लेखन मैं बेहद निम्नतर मानता हूं।
वास्तव में देखा जाए तो पुरस्कार मिले और पुरस्कार के लिए कुछ प्रयास किए जाएं दोनों ही अलग बातें हैं। आज की तारीख में किस तरह से पुरस्कार लिए और दिए जाते हैं यह लेखक जगत में किसी से भी छूपा नहीं है।
दूर दराज में भी ऐसे कई लेखक हैं जो अच्छा लिख रहे हैं। लेकिन वे वो लोग हैं जिन्हें न कोई पुरस्कार मिला है और न उन्हें आप किसी बड़े मंच पर विराजमान देखते हैं। वो चुपचाप अपने काम में लगे हैं। संकोची और शर्मीले किस्म के ऐसे लेखकों को बाहर लाने की जरूरत है।
पुरस्कार किसे बुरा लगता है। हर कोई चाहता है कि इस बार का फलां पुरस्कार उन्हें मिल जाए। वो भी कंधे चैड़े कर के दिखा सकें कि देखो आखिर मुझे भी पुरस्कार मिल ही गया।
आप मुझे पुरस्कार दो और मैं आपको। यदि आपके पास मंच है तो मैं आपको उछालूंगा और आप मुझे। बहरहाल पुरस्कार मिले इसके लिए लेखन किस स्तर का होता है इसका मुआयना तो समय करेगा लेकिन आप खुद अपने लेखन के निर्णायक होते हैं।
कई ऐसे लेखक हैं जो पुरस्कार को ध्यान में रखते हुए भी लेखन करते हैं। दृष्टि फलां फलां पुरस्कार पर होती है और उसके बाद उसी के अनुरूप लेखन करते हैं। यानी पाठक या साहित्य के लिए नहीं बल्कि बाजार जैसा मांगेगा वैसा लेखन करेंगे।

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