Tuesday, December 31, 2013

कैसे कह दूं


हज़ारों मासूमों को बेघर किया,
आंखें से शर्म टपका,
क्या कहूं कब कब रोया,
कैसे कह दूं आज कि,
सब कुछ अच्छा रहा।
स्कूल से बाहर टहलते रहे बच्चे-
गंव कलह में उजड़ता रहा,
बोलो कैसे कह दूं खूशी मनाउं,
रोती सड़कों पर घूमती घुरली,
गोद में टांगे दुधमुंही बच्ची,
देख देख आगे बढ़े
फिर बोलो कैसे कह दूं,
सब कुछ अच्छा।
प्रेम में किए कत्ल-
ख़ून रहा टपकता पल पल,
तर किया मां का आंचल,
बाबा को वनवास दिया,
फिर तुम ही बोलो कैसे कह दूं,
कुछ भी तो न हुआ।
बेरोजगार हुए अपने घर के-
चुल्हा रहा उदास,
मां की लोरी भी छीज गई,
रहा न कोई उल्लास,
फिर बोलो मेरे मन,
कैसे कह दूं,
अब कुछ है आनंद।
नए साल में नई उम्मींदे टांगी-
दो नहीं हज़ारों अंखियां,
देखें सपने मंगल की,
उन आंखों मंे,
चूल्हों में,
दाने दे,
सपनों को आकाश,
घर में मिले रोटी पानी,
कोई न जाए बिदेस।

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