शीतकालीन संसद सत्र पर हंगामा कुछ इस कदर हावी है कि दस दिनों से संसद खामोश है। प्रणवो डा खेद प्रगट कर चुके हैं कि वो इस अवरोध को खत्म करने में विफल रहे हैं। वहीँ मीरा कुमार भी खेद प्रगट कर चुकी हैं।
मालूम हो कि संसद के न चलने में इक दिन का खर्च तक़रीबन ८० लाख रूपये आता है। यदि दस दिन संसद नहीं चला इस का मतलब हुवा जनता की गाढ़ी कमाई पानी में चला गया। मगर सांसदों को इस पर ज़रा भी फिक्रमंद नहीं देख सकते। आपसी संवाद के नाम पर इक दुसरे पर चिताकासी और तंग बयां जारी करते देख सकते हैं।
हमारा देश इतना पैसे वाला नहीं है कि सरकारी खजाने से करोडो रूपये पानी में बहा दे।
गौर तलब हो कि पिछले मानसून सत्र में भी सांसदों की लापरवाही का खामियाजा देश की गरीब जनता भोगत चुकी है। इक रिपोर्ट की माने तो पिछले सत्र में कुल ७ करोड़ ८० लाख रूपये रुकावट की वजह से सरकारी खजाने से व्याय हो चुके हैं।
कितनी श्रम और पसीने बहा कर आम जनता कमाती है जिसकी मेहनत के पैसे यूँ ही बह जाते हैं। लेकिन सांसदों को श्रम भी नहीं आती। उनके वेतन में २०० फीसदी का इजाफा हुवा लेकिन आम जनता के पैसे यूँ ही बह जाये इस पर वो संजीदा नहीं नज़र आते।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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