वो बड़ा हो कर अफसर और बड़ा आदमी होना चाहते हैं। बड़ा आदमी जिसके पास गाड़ी, दफ्तर और पैसे हो। लेकिन ये बच्चे इक अच इंसान भी बनना चाहते हैं। कोने कोने तक आखें देख भर लेने वाली यह भी देखना चाहती है कि बड़े होने के बाद क्या वो चीज है जो उनसे छुट जायेगा। वो पद लिख कर अपने सपने साकार करना चाहते है।
लेकिन स्कूल जाने के लिए न तो कपडे है न ही पावों में पहनने के लिए यैसे में शर्म या कुछ और मज़बूरी में सपने पुरे होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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