Thursday, May 13, 2010

पहले गली फिर अफ़सोस

कितनी मजे की बात है अपनी राजनीती में पहले नेता दुसरे को गली देते हैं और जब बात पर प्रतिक्रिया आती है तब तुरंत से अफ़सोस ज़ाहिर कर देते हैं यह कहते हुवे कि मेरा इरादा किसी कि भावना को ठेस पहुचाना नहीं था मगर दुःख हुवा तो मैं उसके लिए खेद प्रगट करता हूँ। कितना आसन काम है यह कह देना। मगर उतना ही कठिन है शब्द की मर को महसूस कर पाना।
बीजेपी प्रेसिडेंट नितिन गर्कारी ने लालू और मुलायम जिस को कांग्रेस और सोनिया गाँधी के तलवे चाटने वाला बताया। मगर जब बात बदती नज़र आई तो कह दिया कि वह तो मुहावरा था। मेरा मकसद किसी को चोट पहुचाना नहीं था। यह तो चलता ही रहता है। खास कर चुनाव के दिनों में इक दुसरे पर कीचड़ उछालना बेहद ही आम बात है। यद् कर सकते हैं मनमोहन जिस को आडवानी जिस ने क्या कहा था और पलट वर में मनमोहन जिस भी कम नहीं कहा। मगर सर्कार बनजाने के बाद दोनों नेता संसद में दोस्त की तरह मिले। दोनों ने ही कहा चुनाव के दौरान जो कुछ भी कहा सुना गया उसे भूल जाया जय।
राजनीती में कहा सुनी तो चलती ही रहती है। कोई इन पर कान देने लगे तो उसका तो हो गया दिमाग ख़राब। इस लिए तोर मोर चोर तो चलता ही रहता है।

1 comment:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

भैया जी विचार तो अच्छे हैं पर...नेता मानते कहाँ हैं????
हाँ आपकी अच्छी सी पोस्ट में कुछ खटक रहा है....कृपया अन्यथा न लेकर सही करेंगे...
गली ----------->शायद गाली होगा?
गर्कारी ---------> गड़करी में बदल दीजिये.
सर्कार ---------> को सरकार तो रहने दें.
और भी हैं देख लीजियेगा................... अन्यथा नहीं लेंगे...
================================
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...