Wednesday, May 5, 2010

रुका हुवा फैसला और कसाब

कसाब को दुनिया ने नंगी आखों से देखा है कि कदर उसने मुंबई में कहर बरपाया। उसने कुबूल भी किया। फैसला अभी तक रोक कर रखा गया है। कुछ लोगों का मन्नना है कि उसकी उम्र महज २२ साल है उसे सुधरने का मौका मिलना चाहिए। क्या इस दलील में दम है? यदि वो खुद से पूछे तो उसकी रूह बोल उठेगी कि तुमको इस काम के लिए दुनिया का कोई भी न्याय बचा नहीं सकता।
कितने आशु , कितने सपने का खून किया है इस का शयद उसे इल्म नहीं। लेकिन जिस बच्ची के सर से बाप का शाया उठ गया उस से कोई पूछे कि बाप का मरना क्या होता है। उस औरत से कोई जा कर पूछे कि पति के बिना ज़िन्दगी क्या मायने रखती है? लेकिन सवालों से कसाब को क्या लेना। उसे तो आकयों ने सिखाया है आशुयों पर मत जाना, उदास चहरे मत देखना। वर्ना मनन करने लगोगे कि कहीं गलत तो नहीं कर रहा। हमारा धर्म दहशत, खून बहाना, चीखें पैदा करना है। हमारी न तो कोई बहन, माँ , बाप , भाई बेटी, हैं नहीं हम किसी के पिता ही हैं।

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