तकनीक जहाँ हमारे रोजमर्रे की ज़रूरतों को आसान किया है वहीं कुछ लोगों के लिए आफत से कम भी नही होती है तकनीक का इस्तमाल करना। डर हलाकि कई तरह की होती हैं मसलन पानी, आग, उचाई, किसी वस्तु, या किसी भी खास चीज से आपके मन में भय बैठ सकता है। बचपन की कोई भयावह घटना भी डर का कारन बनते हैं। अगर बच्चे को शुरू में ही डर के वजह को ख़त्म कर दे तो आगे चल कर वह उस चीज से डरेगा नही। मगर हम चीजों को समझने की जगह डर को बार्कर रखने में मदद करते हैं। परिणाम यह होता है की बच्चपन का डर जीवन भर साथ रहता है। हो सकता है वही डर अगली पीढ़ी में भी ट्रांसफर हो जाए।
पिछले दिनों अपने पिता जी को मोबाइल उसे करना सिखा रहा था तब मैंने महसूस किया की उन्हें मोबाइल के बटन प्रेस करने में कठिनाई हो रही है। कई बार इक बात समझा कर थक गया। मुझे लगा शायद मैं सिखने में सफल न हो सकूँ। मगर इक बार मुझे बचपन में पढ़ते समय पिताजी के चहरे पर उदासी दिखी। पिताजी निराश से लग रहे थे। पास की चाची ने कहा पंडी जी पूरे शहर के लड़कों को पढ़ाते हैं मगर अपना बेटा ही नही पढ़ा पाते। पिताजी को बात लग गई। उन्होंने कहा अगर मैं सही में कुशल मास्टर हूँ तो इसे को पढ़ा कर ही दम लूँगा। और देखते ही देखते वह दिन भी आया की वह लड़का इक दिन पढ़ लिख गया। यह ज़वाब था मेरे पिताजी का चाची के लिए। पिताजी ने उस टाइम तो कुछ नही कहा था मगर मन में बैठा लिया की इस को पढ़ा कर ही रहूँगा। वह लड़का कोई और नही बल्कि मैं ही हूँ।
अब मेरे आखों के सामने २० २२ साल पहले की घटना घूम गई । मैंने सोचा जब पिताजी मुझे पढ़ा कर ही चैन लिए तो मैं भी उनको मोबाइल का इस्तमाल करना सिखा दूंगा। तीन ऋण में इक ऋण पित्री ऋण भी है, सो मोबाइल के इस्तमाल के सिख दे कर ऋण में मुक्त होना चाह थी। और देखा की उन को मोबाइल के कमांड और बटन के इस्तमाल में परेशानी हो रही है। सो कई तरह के उद्धरण से मोबाइल का प्रयोग सिखा दिया। मुझे उस टाइम गुस्सा, खीज भी होती की क्या है पढ़े लिखे हैं फिर क्यों समझने में बाधा क्या चीज है। मैंने देखा की दरअसल जो लोग जीवन में तकनीक के इस्तमाल से भागते हैं उन के लिए नये नए तकनीक इक डर से कम नही है।
अपने डर के ऊपर ख़ुद को काबू पाना होता है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Sunday, December 13, 2009
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