Monday, June 15, 2009

मुहब्बत भाषा से

अगर भाषा से मुहब्बत हो तो भाषा दर्रती नही बल्कि वो लंबे समाये तक साथ देती है। लेकिन समस्या यही है की हम भाषा से मुहब्बत करने की वजाए केवल नम्बर पाने तक का रिश्ता रखते हैं। तभी तो हमारा भाषा के साथ रिश्ता ज़यादा लंबा नही चल पाटा। अगर चाहते हैं की भाषा हमारी संगनी हो तो उसके साथ इमानदार होना होगा। यानि भाषा को बेंताहें प्यार करना होगा।

1 comment:

Sajal Ehsaas said...

aaj to ye baat samajhta hoon par kaash e baat school ke dino me samajh aayi hoti...sahi keh rah hai aap bilkul

www.pyasasajal.blogspot.com

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...