Tuesday, June 6, 2017

खिलाफ़ हैं आज मेरी ही कविताएं


मेरी ही कविताओं ने आज खिलाफत छेड़ दी
मेरे ही सामने खड़ी हो गईं तन कर,
सवाल करती हैं
पूछती हैं वो अनुभव किसका था
जिसमें तुमने हमें डुबोया,
पूछती हैं मेरी ही कविताएं
कि वो तर्जबा किसका था जिसे तुमने मुझमें उतारा।
मेरी ही कविताएं आज खिलाफ में खड़ी हैं-
कहती हैं वो हवाएं,
वो तंज़ करती बातें
कहां से लाए थे
कहां से लाए थे
वे एहसासात
जिसमें सिसकियां थीं,
वो तडपन थी,
वो किसका था।
मेरी ही कविताएं आज खड़ी हैं-
मेरे ही बरक्स
सवाल करती हैं
कि वो घटनाएं किसकी थीं
जिसे तुमने अपने नाम कर लिया,
वो बातें किसकी थीं
जिसमें हमें डूबोया,
बता तो ज़रा
वो तोहमत किसकी थी
जो हम पर मढ़ा।
मेरी ही खिलाफ़त पर उतारू
कविताएं
साक्ष्य मांगती हैं
कि वो किनकी हैं
जो लिखे हैं
ख़ाली पन्नों पर
जिनपर आज सवाल उठते हैं।

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