Tuesday, June 20, 2017

शिक्षक बिना पगार कब तक पढ़ाए

कौशलेंद्र प्रपन्न
दिल्ली व दिल्ली के बाहर विभिन्न राज्यों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों को नियमित वेतन नहीं मिल पाते। अब तो यह ख़बर भी नहीं बनती। यदि ख़बर बनती भी है तो वह महज अन्य ख़बरों की मंड़ी में शामिल हो जाती है। यदि दिल्ली की बात करें तो पूर्वी दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक शिक्षकों को अमुमन हर तीन चार माह पर वेतन मिला करती हैं। यह सिलसिला पिछले तकरीबन तीन साल से बतौर बिना रूकी जारी है। गौर करें कि शिक्षक दो या तीन ही वजहों से ख़बरों में आता है। या तो वह धराना प्रदर्शन कर रहा होता है या फिर परीक्षा में परिणाम ख़राब आए हों। जब गुणवतापूर्ण शिक्षा की तहकीकात होती है और बच्चे अपने कक्षानुरूप समझ नहीं रखते तब शिक्षक की गर्दन मापी जाती है। पूरे साल शिक्षक किन हालातों में शिक्षण करता है इसकी ख़बर लेने कोई नहीं आता। जो आते भी हैं तो वे नसीहतों के गट्ठर लाद कर चले जाते हैं। रिपोर्ट में बताई जाती है कि शिक्षक ठीक से पढ़ाते नहीं हैं इसलिए परीक्षा परिणाम ख़राब हुए। क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि वह शिक्षक बच्चे आधार कार्ड बनवाने और बैंक के खातों के साथ संबद्ध कराने में कितना समय बरबाद कर चुका है। क्या यह जानने की जरूरत महसूस की गई कि शिक्षक कितने और किस स्तर के बच्चों के साथ वह काम कर रहा है। हालांकि आरटीई कानून के बाद बच्चों को उम्र के अनुसार कक्षा में नामांकन देने का आदेश है। लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या एक कक्षा में बहुस्तरीय और बहुभाषी बच्चे हैं उनमें नए आए उम्र के अनुसार उन्हें कैसे पढ़ाया जाए इसकी तालीम व प्रशिक्षण उन्हें दिया गया। यदि ऐसा नहीं हुआ तो बच्चे कक्षा में पिछड़ेंगे। इसके लिए हमें जमीनीतौर पर शिक्षकों की दक्षता को बढ़ाने की आवश्यकता है न कि उन्हें पानी पी पीकर कोसते रहें।
इन दिनों पूर्वी दिल्ली नगर निगम तकरीबन 55,000 शिक्षक पिछले तीन माह से बिना वेतन के काम कर रहे हैं यह घटना अब उनके लिए नई नहीं है।लेकिन एक सवाल खडा हैकि कोई कितनी बार और कितने माह तक बिना वेतन के अपनी नैतिक और पेशेगत प्रतिबद्धता को बनाए रख सकता है।उन्हें भी बाल बच्चे पालने हैंहजार किस्म के खर्च हैं जिन्हें उठाने हैं आखिर वे कभी तो प्रदर्शन करेंगे। कभी तो कहीं तो आवाज उठाएंगे। गौरतलब हो कि जब भी शिक्षक सडक पर अपनी आवाज उठाकर कर उतरता हैतब यही बात गूंजती हैकि इन्हें तो पढ़ाना चाहिए। इन्हीं की वजह से बच्चे पढ़ नहीं पाते। इनकी नौकरी आधी दिन की होती हैआदि। यदि ऐसा ही हैतो क्यों न ऐसी बात करने वाले शिक्षक बन जाते हैं। उपदेश और हकीकत में इस पेशे को चुनने में काफी अंतर हैं
शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला में कुछ प्राथमिक शिक्षकों से बातचीत के दौरान मालूम चला कि पिछले साल नोट बंदी का असर स्कूलों पर भी देखा गया एकबारगी बात समझ में नहीं आई। नेटबंदी का असर सकूलां पर कैसे? तब शिक्षकों ने खुलासा किया कि जिन बच्चों के मां-बाप देहाड़ी मजदूर थे वे काम न मिलने की वजह से अपने गांव लौट गए। कक्षाएं खाली होती चली गईं। दिसंबर की छुट्टियों के बाद जो बच्चे घर गए वे लौटकर नहीं आए। हमें इतना दुख हुआ कि फलां बच्चा पढ़ने में कितना अच्छा था लेकिन अब वह स्कूल में नहीं है।कहीं किसी खेत व मचान पर काम कर रहा होगा। दिसंबर तक जहां कक्षाओं में पचास बच्चे थे वही जनवरी के बाद बीस बाइस रह गए। जो बच्चे छूट गए वो शिक्षा से ही गायब हो जाएंगे। यह स्थिति सिर्फ दिल्ली की नहीं हैबल्कि देश के विभिन्न राज्यों के महानगरों व मंझोले किस्म के शहरांं के स्कूलों के हैं। शिक्षक पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन या तो स्कूल में बच्चे नहीं हैं या फिर हैं भी तो उन्हें स्कूल और कक्षा से बाहर कर दिया गया।

4 comments:

Unknown said...

Very well written...Sir you have described the true story of the primary teacher in government schools.

archana said...

Government school teachers are a maligned lot, but there professional lives are not easy. You have written well about the little known ailments of the government school teachers. Timely and complete salary disbursement is the right of every employee

Today only I read about government school teachers in Madhya Pradesh being roped in to sell onions
If teachers are treated like green grocers, students can become vegetables only

Unknown said...

Bilkul sahi situation vayan ki hai aapne. Solution dur dur tak kahin najar nahin aata.

प्रवीण said...

तंत्र को सिर्फ कागजों में शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाना है। उसके लिए शिक्षकों को कामगार समझ लिया गया है।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...