Wednesday, February 15, 2017

जिंदगी ऑन एयर तीन दिन तीन रात की दास्तां



प्रियदर्शन जी की एक अलग भावभूमि पर बुनी गई मीडिया की दुनिया की कहानी कहती है जिंदगी लाइव। ख़बरों के बाजार में ख़बर बिक्रेता और उसकी व्यक्तिगत जिंदगी के पेचोखम के संघर्ष को बयां करती कहानी कई बार सांसों को रोक लेती है। पढ़ते पढ़ते कई बार महसूस होता है कि पाठक स्वयं वहां उन घटनाओं में शामिल है। हो भी क्यों न लेखक स्वयं इसी पेशे में अपने बाल सफेद किए हैं। उन्हीं की बात जो उन्होंने कहीं लिखी है को दुबारा पढ़ें तो सारा माज़रा साफ हो जाएगा।
‘‘ कोई लेखक अपने समय और समाज से कट कर बड़ा नहीं हो सकता। कोई भी लेखक अगर अपने अनुभव संसार के बाहर जाकर लिखता है, तो वह कुछ कुतूहल भले पैदा कर ले, कुछ वाग्जाल भले खड़ा कर ले, बड़ी रचना नहीं कर सकता। अपने अनुभव की आंच में पककर ही कोई रचना बड़ी होती है।’’ क्यांकि कहानी अंततः एक प्रतिप़क्ष होती है, लेखक से पेज 35,
निःसंदेह जिंदगी लाइव प्रिदर्शन के रोज दिन के अनुभवों के रास्तों से गुजर कर निकली कहानी है। कथाकार ने अपनी परिधि नहीं छोड़ी है। कथानक को आगे बढ़ाने के लिए उप शीर्षकों का इस्तमाल भी दिलचस्प है। कहीं न कहीं वे उप शीर्षक काव्य तो हैं ही आगे की कहानी पढ़ने के लिए उत्सुक भी करते हैं।
पुनः प्रियदर्शन जी को बधाई।


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