Monday, February 6, 2017

शहर सोता रहा....

शहर सोता रहा....
शहर में कोई हलचल नहीं,
सब सो रहे थे,
पूरा शहर सो रहा था।
मंदिर,गुरुद्वारा,
सब मौन थे,
सुबह घंटे बजते,
सबद होता।
शहर सो रहा था
बीच से चीरती हुई
सड़क निकल गई
बीच शहर से
काली,पतली सड़क।
सड़क के रास्ते जो भी आया
उसे उजड़ना पड़ा।
शहर के बीचों बीच चीरती हुई निकल गई सड़क
दनदनाती गाड़ियां
तेज रफ्तार में
रात के सन्नाटे को चीरती
पास से गुजरती रात।
शहर सो रहा था
रात सोई थी,
सोया था शहर अपनी पूरी नींद में
बस शहर के लोग जगते सुबह सुबह
कि एक तेज रफ्तार ने रौंद दिया था बाबु को
शहर की नींद खुली
शहर सड़कों पर था,
कि भीड़ चाहती थी
सड़क को सज़ा मिले
सड़क खोद दी गई।
लेकिन एक फ्लाइ ओवर हुआ करता था
जहां से गुजर जाती थी सड़क
सरपट,
बिना शहर को जगाए।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...