Wednesday, December 14, 2016

पुनः परीक्षा भव


कौशलेंद्र प्रपन्न
मानव संसाधन विकास मंत्री ने हाल ही में घोषणा की है कि आने वाले कुछ ही दिनों में शिक्षाविद्ों की एक समिति राष्टीय शिक्षा नीति पेश करेगी। इस समिति में सांसद,शिक्षाविद्, अन्य विशेषज्ञों का शामिल किया गया है। लेकिन इसका खुलासा नहीं  किया गया कि वे कौन से शिक्षाविद्, सांसद एवं सदस्य हैं। संभव है उन नामों से पता चल सके कि इस राष्टीय शिक्षा नीति की पूर्वग्रहों और वैचारिक प्रतिबद्धता का अनुमान लग सके। इन्हें ध्यान में रखते हुए नामों को अभी तक गोपनीय रखा गया हो। गौरतलब है कि राष्टीय शिक्षा नीति पर 2015 में काम शुरू हुआ था। तब स्मृति ईरानी हुआ करती थीं। उस नई राष्टीय शिक्षा नीति को टीएसआर सुब्रमण्यन नेतृत्व कर रहे थे। किसी कारण से इस एनपीई के कुछ पन्ने सुब्रमण्यन ने सोशल मीडिया के पर साझा किया था और आनन फानन में सरकार ने अपनी ओर चालीस पन्नों का एक दस्तावेज नागर समाज के साझा किया था। संभव एनपीई को नई चाल में ढाल कर नागर समाज को सौंपने की योजना बना रही है। शिक्षा में इन बरस काफी कुछ घटी हैं और बल्कि कहना चाहिए तेजी से घट भी रही हैं। हाल ही में एनसीईआरटी ने घोषणा की है कि जल्द ही पूरी देश भर के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा से आठवीं तक के बच्चों की सीखने की गति और गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जाएगा। एनसीईआरटी के साथ ही गैर सरकारी संस्था प्रथम की ओर हर साल असर रिपोर्ट छपती रही है जिसमें बताया जाता है कि कितने बच्चे पढ़ पाते हैं, कितने बच्चे लिख पाते हैं, कितने बच्चे महज पढ़ तो लेते हैं लेकिन समझ नहीं पाते आदि। अब यह इसी काम को एनसीईआरटी करने जा रही है जिसका मकसद व्यापक स्तर पर बच्चे क्या पढ़-लिख रहे हैं उसकी जांच की जाए और समाज के सामने उस सच्चाई को लाई जाए जिससे हमारा साबका पड़ता है।
एनसीईआरटी के इस अभियान में गणित और विज्ञान को शिमल किया गया है। मालूम नहीं कि किस शैक्षिक विमर्श के हवाले से भाषा को छोड़ दी गई है। क्या ही बेहतर होता कि जब हम गणित और विज्ञान में बच्चों की समझ जांच ही रहे हैं तो भाषा को भी शामिल कर ली जाए। हालांकि भाषा में बच्चों की गति को मांपने वाली रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर जीएमआर और डाईस आदि भी जारी करती रही हैं संभव इसलिए इस बार भाषा की बजाए गणित और विज्ञान को केंद्र में रखा गया।
ध्यान हो कि केंद्रीय शिक्षा सलाहकार समिति और एनसीईआरटी ने मानव संसाधन मंत्रालय को सिफारिश सौंपर है कि दसवीं की परीक्षा 2017-18 से दुबारा शुरू की जाए। वर्तमान एचआरडी ने इस पर अपनी सहमति भी दे चुकी है। यानी पुनः परीक्षा भव चरितार्थ होता नजर आ रहा है। दसवीं की बोर्ड परीक्षा और किसी भी बच्चे को आठवीं तक फेल न किए जाने के पीछे विमर्श यह हुआ था कि बच्चों में परीक्षा को लेकर एक डर भय पैदा हो चुका है इसे दूर किया जाना चाहिए। क्योंकि परीक्षा के डर की वजह से ही हजारों बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। अपने बच्चों को आत्महत्या से बचाने के लिए परीक्षा की प्रकृति को बदलने की आवश्यकता है। और देखते ही देखते सतत् मूल्यांकन का चलन शुरू हुआ। शिक्षकों की मानें तो आगे चल कर बच्चों में पढ़ने की ललक कम होती चली गई। बच्चों के अंदर की पढ़ने के प्रति दिलचस्पी भी कम होती चली गई। बच्चे स्पष्ट कह देते थे कि आप फेल नहीं कर सकते। फेल कर के दिखाओ जैसी धमकियां देते बच्चे कक्षा में उभरने लगे। शिक्षकों की चिंता भी एक तरह से जायज लगती है कि बच्चों को पढ़ाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं जब से उन्हें मालूम चला कि उन्हें फेल नहीं किया जाएगा। वहीं इस नीति का एक दूसरा चेहरा भी सामने आया कि कक्षा 8वीं तक जो बच्चे नीतिगत प्रावधान की वजह से अगली कक्षा में भेज दिए जाते थे अचानक नौंवी कक्षा में फेल होने वाले बच्चों की संख्या में उछाल देखा गया। इसी वर्ष जुलाई में विभिन्न अखबारों ने खबरें लगाईं कि नौंवी तकरीबन 20 हजार बच्चे दिल्ली में फेल हो गए। यह केवल दिल्ली का ही मसला नहीं था बल्कि पूरे देश में बच्चे नौंवी में फेल हो रहे हैं। शिक्षकों और प्रधानाचार्यों का मानना है कि फेल न करने की नीति ने बच्चों को गंभीर पढ़ने से विमुख किया। आने वाला साल 2017 शिक्षा की दृष्टि से ख़ासा महत्वपूर्ण होने वाला है। नई राष्टीय शिक्षा नीति आएगी, बच्चों को दसवीं की परीक्षा देनी होगी। साथ ही कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों की गणित और विज्ञान की समझ की परीक्षा ली जाएगी जिसे राष्टीय स्तर पर साझा किया जाएगा।
शिक्षा में परीक्षा, मूल्यांकन, शिक्षण पद्धति एवं कौशल विकास आदि को अहम अंग माना जाता है। इनमें से कोई भी कड़ी कमजोर होती है तो उसका असर बच्चों पर साफ दिखाई देती है। क्योंकि हमारा अंतिम लक्ष्य बच्चां को निर्भय एवं सृजनात्मक नागरिक बनाना है। यह किसी भी परचे को पास कर अंक व ग्रेड हासिल करने से नहीं आ सकता।


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