Friday, August 26, 2016

वेब पत्रिकाओं मंे बच्चे


कौशलेंद्र प्रपन्न
तकनीक के बदवाल के साथ ही प्रकाशन और मुद्रण के स्वरूप में कए बड़ा बदलाव यह आया कि कागज की बजाए वेब पर साहित्य का प्रकाशन होने लगा। भोजपत्र, पेपाइरस, ताड़पत्रों, क्ले टेब्लेट्स, भीति पत्रों, स्तम्भों आदि का इस्तमाल हम पहले लिखने,प्रकाशन आदि के लिए करते थे। प्रकाशन और लेखन को संरक्षित करने के प्राचीन तौर तरीकों से आगे निकल चुका हमारा समाज आज गेगा बाइट्स, टेरा बाइट्स में अपने साहित्य को संरक्षित कर रहा है। एक ओर साहित्य मुद्रित रूप में उपलब्ध हैं तो वहीं दूसरी ओर हजारों लाखों पन्ने आभासीय दुनिया में तैर रही हैं। नब्बे के दशक के अंत में वेब साहित्य व वेब पत्रिकाओं की शुरुआत हो चुकी थी। धीरे धीरे लेखक,प्रकाशक भी इस ओर मुड़ने लगे। जहां पन्नों को पलटते थे और पत्रिकाओं को पढ़ाने का आनंद लेते थे अब बटन दबाते, एक क्लिक पर एक नई दुनिया के दरवाजे खुल जाते हैं। गुलजार साहब की एक कविता से पंक्ति उधार लेकर कहूं तो किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से/जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं/ अब अक्सर गुजर जाती हैं कम्प्यूटर के परदों पर/ अब उंगली क्लिक करने से बस झपकी गुजर जाती हैं/ किताबें मांगने गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे/उनका क्या होगा/वो शायद अब नहीं होंगे। इन पंक्तियों मंे गुलजार साहब ने किताबों की बदलती दुनिया की ओर बड़ी ही बेचैनी से अपनी चिंता जाहिर की है। और काफी हद तक सच के करीब भी है कि जिस देश में अभी भी स्कूलों से सात करोड़ बच्चे स्कूल न जाते हों। स्कूल में बैठने, पीने का पानी, शौच की व्यवस्था तक नहीं है ऐसे में कितने बच्चे/बड़े हैं जो कैंेडल पर किताबें पढ़ते हैं। कैंडल्स व आॅन लाइन किताबें/पत्रिकाएं/अखबार पढ़ने वाले एक खास वर्ग ही हैं। अभी भी हमारा बच्चा और बाल समाज इस स्थिति में नहीं है कि वो इंटरनेट पर साहित्य का आनंद ले सके। देश के व्यापक बच्चों को आज भी छपी हुई सामग्री ज्यादा लुभाती हैं।
बाल मनोविज्ञान और बाल शिक्षा दर्शन इसे स्वीकार कर चुका है कि बच्चों को मुद्रित सामग्री के साथ ही दृश्य और श्रव्य सामग्रियां ज्यादा स्थायी तौर पर पसंद आती हैं। जहां तक स्मृतियों में दर्ज होने का मसला है कि मनोविज्ञान कहता है कि बच्चों को दिखाई और सुनाई गई सामग्री लाॅंग टर्म मेमेारी में दर्ज हो जाती हैं। यानी दीर्घ कालीन स्मृतियों का हिस्सा हो जाती हैं। इसलिए बच्चों का साहित्य व शिक्षण श्रव्य और दृश्य सामग्रियों से भरपूर होना चाहिए। यही कारण है कि बाल पत्रिकाएं और बाल साहित्य भरपूर रंगों, चित्रों, रेखाचित्रों, कार्टून का इस्तमाल करती हैं। ताकि बच्चा ज्यादा से ज्यादा कंटेंट को चित्रों के मार्फत ग्रहण करे।
आज की तारीख में कई हजार पन्नों वालों वेब पत्रिकाएं उपलब्ध हैं। उनमें से बच्चों के लिए कितना उपयोगी सामग्री उपलब्ध है इसका एक जायजा लेना अनुचित न होगा। इस लिहाज से चार बड़े वेब साइटों जो साहित्य, संस्कृति,कला आदि पर केंद्रीत है उसके कंटेंट यानी कथ्य सामग्रियों की एक पड़ताल बाल साहित्य के नजरिए की। इसमें हिन्दी समय डाॅट ओरजी जो वर्धा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय के तत्वाधान मंे प्रसारित और वेबकास्ट होता है। दूसरा कविताकोश डाॅट ओरजी, तीसरा गद्यकोश डाॅट ओरजी और चैथा हिन्दी नेस्ट डाॅट काॅम। इन वेब पत्रिकाओं के चुनाव के पीछे हमारी मनसा स्पष्ट थी कि क्या इन वेब पत्रिकओं, व प्लेटफार्म पर बच्चों के साहित्य को स्थान दिया गया है। यदि बाल साहित्य है तसे उसकी गुणवता और चयनित सामग्री की कितना प्रासंगिकता है। अब उक्त वेब साइटों पर उपलब्ध बाल साहित्य की चर्चा विस्तार से नीचे दी जा रही है।
हिन्दी समय डाॅट काॅम पर मुख्य पृष्ठ पर है विषयों के विभाजन में एक काॅलम शीर्षक बाल साहित्य का है। इस काॅलम को खोलने के बाद बाल साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार,लेखक,कवियों,नाटककारों की रचनाएं नामानुसार प्रस्तुत की गई हैं। इन लेखकांे में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, प्रकाश मनु, विनोद कुमार शुक्ल, सुभद्रा कुमारी चैहान, अलका सरावगी, जय शंकर प्रसाद, अशोक सेकसरिया, श्री लाल शुक्ल, रमेश तैलंग, हरिशंकर परसाई, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि की बाल रचनाएं कहानियां, नाटक दी गई हैं। इनमें निराल जी की गधा और मेढ़क, हरिशंकर परसाई जी की चूहा और मैं, प्रकाश मनु की एक टमाटर का दाना आदि पढ़ना वास्वत में मौजू है। वहीं दूसरी ओर हमें हिन्दी समय के बाल साहित्य खंड़ में पद्म लाल पुन्ना लाल बख्सी की कहानी बुढ़िया भी शामिल है। वहीं हरकिृष्ण देवसरे की कविता कवितर तेंदूराम पढ़ना आनंददायी है। लगभग पचास लेखकों की बाल कहानियां,नाटक,कविताएं निश्चित ही संतोष देता है।
कविताकोश डाॅट ओरजी में विभिन्न विषयों अनुक्रमों मंे एक विषय बाल कविताओं का है। इसकी खासियत यह है कि इसमें कोशानुसार वर्णानुक्रम से रचनाकारों की बालरचनाएं सर्च कर पढ़ी जा सकती हैं। जहां पर हमंे बाल कथाकारों,कवियों की रचनाओं से गुजरने का मौका मिलता है। इसमें लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, विजय किशोर मानव, रमेश तैलंग, दिविक रमेश, वीरेंद्र मिश्र, देवेंद्र कुमार आदि की प्रसिद्ध बाल कविताएं मिलेंगी। मसलन दिविक रमेश की कविता-उल्लू क्यों बनाते हो जी भी शामिल हैं। सूर्यकुमार पांडेय की कविता एक पान का पत्ता भी मिलेगा। इस कविताकोश में बाल कविताओं की प्रचूरता को देखते-पढ़ते हुए अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि इस कोशकार ने काफी मेहनत की है बाल कविताओं और बालकवियांे को एक स्थान पर मुहैया कराने में।
गद्यकोश डाॅट ओरजी जैसा कि नाम से मालूम होता है कि इसमें सिर्फ और सिर्फ कहानियों ही मिलेंगी। यथानाम तथा गुणः यह कोश है। इसमें बाल कहानी के नाम से उप शीर्षक मंे हमें विभिन्न बाल कथाकारों की बाल कहानियों मिलती हैं। इस वेब साइट के मुख्य विषयों मंे हमें दो शीर्षक बच्चों के लिए मिलता है। पहला बाल कथाएं और दूसरा बाल उपन्यास। बाल कहानियों के आंगन में हमें 139 पृष्ठों में फैला बाल कथा संसार नजर आता है। इसमें मनोहर चमोली ‘मनु’, बलराम अग्रवाल, गिजूभाई बधेका आदि की बाल कहानियां समग्रता में पढ़ सकते हैं। वहीं बाल उपन्यासों में पन्ने थोड़े कम हैं कुल् तीन पन्नों का यह बाल उपन्यास खंड़ सिर्फ तीन उपन्यासों का समेटे हुए है। जिसमें हिमांशु जोशी की तीन तारें जो कि 2005 में किताब घर प्रकाशित है और यशपाल जैन की राजकुमारी की प्रतिज्ञा जतो 2005 में प्रकाशित हुई थी उपलब्ध है। इसके अलावा अभी यह खंड़ सूखा पड़ा है।
अब बात करते हैं बाल साहित्य को भी साथ लेकर चलने वाला वेबसाइट हिन्दी नेस्ट डाॅटकाॅम की। इस वेब साइट पर हमंे बच्चों की दुनिया शीर्षक से बच्चों की वास्तव में दुनिया का नजारा मिलता हैं। इसे वेबसाइट में बच्चों के साहित्य कहें या बाल दुनिया बड़ी ही व्यवस्थित तरीके से विभिन्न उपखंड़ों में परोसा गया है। मसलन- बच्चों की दुनिया में चीता कैसे बना सबसे तेज, जिराफ की गर्दन लंबी कैसे हुई? शेर फल क्यों नहीं खाता जैसे विषयों पर आलेख हैं वहीं कहानियों के खंडत्र में हमें अमर ज्येाति, बेबी माने अप्पी, छोटा सा रहस्य, नन्हीं नीतू आदि कहानियां संकलित हैं। वैसे ही कविताओं का अलग से एक ख्ंाड़ मिलता है जिसमें अगर पेड़ भी चलते होते, आओ मिल कर पेड़ लगाएं, गधा जानवर आदि कविताएं संग्रहीत की गई हैं। साथ ही साथ बाल निबंधों को भी ध्यान मंे रखते हुए स्थान दिया जाना वास्तव में सुखकरी है। इस खंड़ में अपने देश को जानो, दिल्ली का गुडियाघर, समुद्र में स्वरलहरियां आदि दी गई हैं। और तो और नन्हें बच्चों की रचनाओं को भी तवज्जो दी गई है। नन्हें बच्चों की रचनाएं उप शीर्षक से एक नन्ही सी बच्ची की दीवाली, निराले रंग, नया साल आया आदि बच्चों की रचनाओं से रू ब रू होने का अवसर मिलता है। बच्चों की चित्रकारी काॅलम में छोटे बच्चों की बनाई चित्रकारियों को शामिल किया गया है। इसमें हमें चित्र के साथ ही बच्चों की कविताओं से भी गुजरने का मौका मिलता है। बच्चे अपने देश,गांव, खेत खलिहान को कैसे और किस नजर सेक देखभाल रहे हैं इसका जायका हमें इस काॅलम के तहत मिलता है। एक और दिलचस्प बात यह है कि हमारे आस-पास के पक्षी काॅलम में विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी दी गई है। जैसे कठफोड़वा, किगफिशर,बया, शकरखोरा, शाह बुलबुल आदि पक्षियों की आवाजों, परिवार से बच्चों को परिचित कराने का बेहतर काॅलम पढ़ने को मिलता है।
इस तरह से हमने लाखों हजारों पन्नांे और गेगा बाइट की दुनिया से तीन हिन्दी के सशक्त वेब पत्रिकाओं के कंटेंट यानी कथ्य की चर्चा की जिसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि किसी भी शिक्षक, विद्यार्थी को बाल कहानियां,कविताएं पढ़नी हो तो यहां विजिट कर सकते हैं। संभव है इंटरनेट की इस पयोधि में काफी उपयोगी और सार्थक वेब पत्रिकाएं रह गई हों।
आज की तारीख में हमारा साहित्य भी चोला बदल चुका है या फिर बदलने की प्रक्रिया मंे है। पुराने से पुराने अखबार, पत्रिकाएं, पुस्तकों आदि को डिजिटल रूप में तब्दील किया जा रहा है। ऐसे में बाल कहानियों, कविताओं, बाल पत्रिकाओं को आॅन लाइन करना, डिजिटल रूप में बदलना एक आवश्यक कार्य है। यही वजह है कि राष्टीय संग्रहालय ने विभिन्न पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल फार्म में तब्दील किया जा रहा है। साथ ही पत्रिकाओं के पुराने और नए संस्करणों को आॅन लाइन निकालने की कोशिश रही है।


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