Wednesday, August 24, 2016

स्कूली रिपोर्ट के आगे की हककीत



विद्यालयी शिक्षा को लेकर सरकारी और गैर सरकारी रिपोर्ट को झुठलाती जमीनी तल्ख़ हकीकत कुछ और ही मंजर बयां करती हैं। हाल ही में दिल्ली सरकार ने एक सर्वे रिपोर्ट साझा किया जिसमंे गंभीरतौर पर चिंता जतलाई गई थी कि सरकारी स्कूल के बच्चे हिन्दी पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर हैं। बच्चों को हिन्दी के सामान्य वाक्य तक लिखना-पढ़ना नहीं आता। इसी किस्म की रिपोर्ट प्रथम की भी आ चुकी है जो लगातार पिछले 2005 से इस बाबत रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहा है। इसी के साथ ही सरककारी संस्था डाईस भी रिपोर्ट जारी कर चुकी है। इन तमाम रिपोर्ट से गुजरते हुए एक ही छवि बनती है कि सकराी स्कूलों मंे न तो ठीक से शिक्षण हो रहा है और न ही शिक्षक मेहनत कर रहे हैं। शिक्षक ख़ासकर शक के घेरे में लिए जाते हैं कि इन्हें मोटी रकम बैठे बिठाए मिलती है। पढ़ाते-वढ़ाते नहीं हैं। यह छवि कैसे बनी होगी और वे कौन से आधार हैं जिनपर इस तरह की धारणाएं बनती हैं उन्हें समझने की आवश्यकता है। जरूरत तो इस बात की भी है कि हिन्दी को पढ़ाने के तौर तरीके कैसे अपनाएं जाए रहे हैं और कक्षा तक शिक्षक किस रूप में लेकर जा पाता है। यानी कहीं न कहीं न पढ़ पाने व न लिख पाने की स्थिति का जिम्मेदार बच्चा है,शिक्षक है या फिर सरकारी की नीतियां जहां सब कुछ एकमेक हुआ पड़ा है। दरअसल यदि बच्चे हिन्दी नहीं पढ़ पा रहे हैं तो इसका अर्थ यह कत्तई नहीं है कि वे अन्य विषयों में दक्षता हासिल कर चुके हैं। अध्ययन तो यह भी बताते हैं कि न केवल भाषा बल्कि गणित, विज्ञान आदि विषयों मंे भी बच्चों की दखलंदाजी कम ही है। दूसरे शब्दों मंे यदि बच्चे विभिन्न विषयों मंे अपेक्षित दक्षता हासिल नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें शिक्षण पद्धति, पाठ्यपुस्तकें और अध्यापकीय सत्ता भी काम करती है।
पूर्वी दिल्ली नगर निगम में टेक महिन्द्रा फाउंडेशन और पूर्व दिल्ली नगर निगम के साझा प्रयास से अंतःसेवाकालीन शिक्षण शिक्षा संस्थान की शुरुआत 2013 में हई। इसके पीेछे मकसल यह रहा कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों, प्रधानाचार्यों की आदि शिक्षण दक्षता को और तराशा जाए। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के तकरीबन 380 प्राथमिक स्कूल हैं जिनमें तकरीबन 6000 शिक्षक हैं। टेक महिन्द्रा फाउंडेशन ने अब तक कम से कम 3500 शिक्षकांे को विभिन्न विषयों की शिक्षण कार्यशाला मंे प्रशिक्षण प्रदान कर चुका है। हिन्दी,गणित,अंग्रेजी, विज्ञान और समाज विज्ञान के साथ ही आर्ट एंड क्राफ्त, म्युजिक आदि की कार्यशालाओं मंे शिक्षक/शिक्षिकाओं को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यदि शिक्षकों के अनुभव की बात करें तो वे स्वीकारते हैं कि उन्हें इन कार्यशालाओं मंे रोचक तरीके से कैसे पढ़ाएं इसकी समझ मिली। यहां आने वाले विषय विशेषज्ञों ने काफी मदद मिलती है। प्रतिमा कुमारी भजनपुरा डी ब्लाॅक प्रथम पाली की शिक्षिका हैं उनका कहना है कि हमने आज तक कई सेमिनार किए लेकिन जो तत्परता, कौशल और मनोयोग से इन कार्यशालाओं में सिखाया जाता है वैसी गुणवत्ता हमें पिछले बीस साल की नौकरी में नहीं मिली। ऐसे ही उद्गारों से रू ब रू होना पड़ता है शैल्जा चैधरी को जो कि अंतःसेवाकालीन शिक्षक शिक्षा संस्थान में हिन्दी विभाग में सहायक के तौर काम करे रही हैं इनका मानना है कि उन्हें कई शिक्षकों ने बताया कि उनके शिक्षण विधि में एक बड़ा अंतर आया। पहले वे वैसे ही पढ़ाते थे जैसे वे पढ़कर आए थे। लेकिन कार्यशाला के बाद उन लोगों ने अपनी शैली में बदलाव किया। वे अब गतिविधियों को शामिल करने लगे हैं जो उन्हें इन कार्यशालाओं मंे सिखाया जाता है। अब बच्चे ज्यादा आनंद लेते हैं।
पूर्व दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों जिसमें भजनपुरा,यमुना विहार, सीमापुरी,दिलशाद गार्डेन, गोकुल पुरी, मयूर विहार आदि  शामिल थे। हमने कक्षा अवलोकन में पाया कि न सिर्फ बच्चे लिखे हुए को पढ़ने मंे सक्षम हैं बल्कि स्वतंत्ररूप से वाक्यों को लिखने में भी दक्ष हैं। हमने कोशिश की कि बच्चे पाठ्यपुस्तकों से ऐत्तर क्या वे लिख और पढ़ सकते हैं इसके लिए हमने चार से पांच पंक्तियां हिन्दी मंे लिखीं जिसे बच्चों ने अच्छे से पढ़ा। कुछ वाक्यों में व्याकरणिक स्तर वर्तनी की अशुद्धियां भी की थीं जिसे बच्चों ने पकड़ा और दुरुस्त भी किया। विभिन्न स्कूलों के अवलोकन के आधार पर कह सकता हूं कि जिन लोगों,संस्थानों की रिपोर्ट यह कहती है कि सरकारी स्कूल के बच्चे पढ़ना-लिखना नहीं जानते उन्हें दुबारा कुछ और स्कूलांे मंे जाना और देखना चाहिए। एनसीइआरटी द्वारा तय रिडिंग के मानक बिंदुओं पर भी हमने इन बच्चों को समझने की कोशिश की और एक शुभ संकेत मिला कि बच्चे उन पैरामीटर पर भी बच्चे/बच्चियां खरे उतर रहे हैं।
स्कूल की किताबें,दीवारें, छत, सीढ़ियों आदि को शिक्षकों ने टीएलएम के तौर पर विकसित किया है। अकसर प्रथम पाली के शिक्षकों, प्रधानाचार्यों की शिकायत रहती है कि दूसरी पाली के बच्चे चित्र, पोस्टर,टीएलएम को बरबाद कर देते हैं। सुबह लगाव और दोपहर तक वो फट कर नीचे गिरे मिलते हैं। लेकिन शिक्षकों के प्रयास की सराहना करनी चाहिए कि इन सब स्थितियों के बावजूद भी वे अपने प्रयास से पीछे नहीं हटते। कक्षाओं मंे भी शिक्षकों ने बच्चों की मदद से वर्णमालाएं , कविताएं, कहानियां आदि सचित्र तैयार किया है। इसका नजारा तो तभी मिल सकता है जब हम कक्षाओं मंे पूर्वग्रह को झांड़ कर जाएं। यहां एकपक्षीए विमर्श करना मकसद नहीं है बल्कि जो देखा, सुना, पाया और महसूस किया उसे सामने लाना है। अपने कक्षायी अवलोकन में पाया कि बच्चे हिन्दी में वाक्य को पढ़ने,लिखने में सहज थे। वे न केवल रिमझिम की किताब को पढ़ पा रहे थे बल्कि वे लिख भी रहे थे। भाषा के चारों कौशलों मंे दक्ष नजर आए। वे पूरी मजबूती और आत्मविश्वास के साथ अपनी कविता,कहानी का वाचन भी कर रहे थे।
दिल्ली और दिल्ली के बाहर सरकारी स्कूलों मंे हिन्दी कैसे पढ़ी- पढ़ाई जा रही है इसका जायजा लेने के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने बिहार,राजस्थान,हरियाणा,पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि के सरकारी स्कूलों मंे कक्षाओं का अवलोकन किया। अलग अलग कक्षाओं में पढ़ाइ जा रही हिन्दी में आने वाली दिक्कतों में मात्रा, वर्णमालाओं की समझ को लेकर था। हालांकि बच्चों का मात्राओं वाले शब्द पढ़ने में परेशानी हो रही थी लेकिन वे समय लगा कर पढ़ तो रहे थे। बच्चों से आगे निकल कर बात करूं तो शिक्षकों मंे भी हिन्दी की वर्तनी और उच्चारण दोष पाए गए। स,श,ष के साथ ही ड,ड़, च वर्ग के पाचवें वर्ण के उच्चारण में दिक्कतें आती हैं। यदि बच्चे नहीं पढ़ पाते तो इसमें कहीं न कहीं शिक्षकीय भूमिका भी जद मंे होती है। हमें समग्रता में हिन्दी पढ़ने पढ़ाने के मसले को देखना और समझना होगा। जब तक पुस्तकीय वाचन,पुनप्र्रस्तुतिकरण तक शिक्षण को महदूद रखेंगे तब तक ऐसी समस्याएं आती रहेंगी।


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