Wednesday, September 4, 2013

गिजूभाई अब भी हैं हमारे स्कूलों मे


मास्टर जनगणना में, मास्टर पोलियो पिलाने के अभियान में, मास्टर चुनाव ड्यूटी में, मास्टर भोजन पकाने, परोसने में, मास्टर स्कूल के दफ्तरी कामों में आदि आदि खूब सुनते  और पाते भी हैं। लेकिन मास्टर का एक दूसरा पहलू भी है और यह कि मास्टर पढ़ाने के लिए बेचैन भी होते हैं। मास्टर पढ़ाने से पीछे नहीं हटते लेकिन कई बार दूसरे अन्य काम इतने हावी हो जाते हैं कि मुख्य काम दूसरे पायदान पर आ जाता है।
मास्टर शोषण करता है। बलात्कार करता है। बच्चियों को बरबाद करता है। लेकिन ऐसे मास्टरों की भी कमी नहीं है जो सचिन तेंदुल्कर, अमिताभ बच्चन, राजेंद्र प्रसाद, अब्दुल कलाम जैसे बच्चों को गढ़ता और संवारता भी है। उन्हें सही राह भी दिखाता है। इतना ही नहीं मुझे याद आता है मेरे पिताजी अपने स्कूल के गरीब बच्चों जिनमें भी उन्हें उकसने और विकसने की संभावनाएं दिखती थीं उसकी फीस, कापी किताब आदि के पैसे घर में विरोध होने पर चुपके से मदद किया करते थे।
उन्हीं की मदद से आज कई बैंक में मैनेजर हैं, कोई रेलवे में उच्च पद पर हैं, कई मास्टर बन और कुछ अन्य नौकरियों में। आज भी उनमें से कई पिताजी के संपर्क में हैं। वे हमारे घर के सदस्यों में शामिल हैं। ऐसे कई मास्टर हैं जो बच्चों के विकास के लिए घर और स्कूल में अंतर नहीं करते।
आज के गिजूभाई के कंधे पर कई जिम्मेदारियां हैं जिनको पूरा करना है। समाज की अपेक्षाएं, हिकारतें आदि को सहते हुए ये गिजूभाई अपने काम में लगे हुए हैं। ऐसे गिजूभाई किसी पुरस्कार से सम्मानित भी नहीं होते। इससे भी इनके मनोबल कम नहीं पड़ते। लगातार जुटे हुए हैं।
एचएमडीएवी स्कूल दरियागंज जो लगभग सौ साल का हो चुका हैं। इसके विकास और संवर्द्धन में लगे वहां के प्रधानाचार्य रमा कान्म तिवारी भी गजब के उत्साह से भरे हैं। उन्होंने तो इस स्कूल की काया पलट ही कर दी है। लगातार वहां के बच्चे कई विभिन्न अंतर विद्यालयी प्रतियोगिताऔ में जीत हासिल कर रहे हैं। पूरा का पूरा दारोमदार निश्चित ही वहां मुखिया और मास्टरों, अध्यापिकाओं के मेहनत का ही तो फल है। इस तरह कई सरकारी स्कूल हैं जहां के मास्टर गिजूभाई की तरह लगे हैं।

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