Sunday, September 22, 2013

वो बेचारी हमेशा रहती घर से बाहर,
धुप पानी ,
सर्दी गर्मी ,
हर मौसम में सदा बिना उफ़ किये। 
उसकी कहाँ किस्मत की रहे गैराज में 
हाँ कुछ को मिल जाती हैं गैराज ,
लेकिन कई हैं कारें जो हमेश रहती हैं ,
घर के बाहर ,
इंतज़ार में की साहेब,
हमें भी नहला दो ,
की जैसे नहाते हैं बच्चे ,
बेचारी कार ,
नहीं आ पाती घर में,
की जैसे नहीं आती घर में धुप ,
रौशनी ,
 कई कारो के भाग्य में नहीं होता नहाना ,
घर.

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