Monday, October 22, 2012

ठहरा हुआ शहर
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तकरीबन छब्बीस साल पहले सन् 1984 से पहले मेरा शहर, मेरा मुहल्ला आबाद था। इधर डालमिया कारखाने का बंद होना था कि उधर एक-एक कर लोगों का शहर से पलायन शुरू कर चुका था। सबसे पहले बड़े ओहदे पर काम करने वाले अफसर शहर छोड़ कर जाने लगे। देखते ही देखते शहर एकबारगी खाली- खाली- सा लगने लगा। यूं तो शहर कभी खाली नहीं होता, रोज़ लोग आते रहते हैं और सपने बुनते लोगों से शहर हमेशा आबाद रहता है। लेकिन कारखाने का बंद होना था कि गोया मेरे शहर की रफ्तार बल्कि यूं कहें उसकी जिंदगी ठहर- सी गई थी। कारोबार, दुकानों, मकानों में रहने वाले लोग अचानक बेकार से हो गए थे। दुकानों पर भीड़ खत्म होने लगी थी। महंगी चीजें खरीदने वालों के टोटे पड़ने लगे। बाजार सूना- सूना रहने लगा। वैसे तो बाजार में बल्ब लटकाए सब्जी, फल, कपड़े बेचने वाले दुकान तो लगाते थे, लेकिन पहले वाली बात नहीं रह गई थी। हर कोई ...

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